: ३८ : आत्मधर्म : प्र. अषाड : २४९प
जेठ–अषाड मासमां शिक्षणवर्गमां
अभ्यास करी गया; ते उपरांत दिगंबर
जैनसमाजना केटलाक वैराग्यवंत
त्यागीओ पण जिज्ञासाबुद्धिपूर्वक
सोनगढ–चातुर्मास रह्या छे अने
त्यागादि पहेलां आत्मज्ञाननुं महत्व छे
ते लक्षगत करीने ते माटे प्रयत्नशील छे;
तेओ वारंवार उल्लासभर्या उद्गारो वडे
सोनगढना अध्यात्मवातावरण प्रत्ये
पोतानो प्रमोद व्यक्त करे छे.
जामनगरथी पंकज जैन लखे छे
के– ‘मारी बा दररोज कहेता के आत्मानी
समजण करो, तेनो अभ्यास करो, पण हुं
करतो नहीं. पछी एक दिवस में
आत्मधर्म वांच्युं तो एवी मजा पडी के
गुरुदेवे केवो आत्मा बताव्यो छे! अमने
पण समजाय तेवुं छे एटले हवे
वांचवामां मजा आवे छे.
प्रश्न:– आ जीव साक्षात् भगवान पासे
हतो त्यारे पण केम समज्यो नहीं?
उत्तर:– भाई! अमने पण ए ज
पस्तावो थाय छे के केम न समज्यो?
माटे हवे अत्यारे आत्मानुं स्वरूप समजी
लईए, ने प्रमाद करीने फरीने भूल न
करीए–जेथी करीने अत्यारनी जेम
भविष्यमां पण पस्तावानो वखत न
आवे.
रखियालथी रतिलाल एन. जैन
लखे छे के बालविभाग शरू थया पछी
अमारा आ नानकडा गामडामां पण
गुरुदेवना प्रतापे
२६ उपरांत आत्मधर्म आवे छे, ने सौ
होंशथी तेनो लाभ छे. पाठशाळाना बाळकोने
बहुज आनंद आवे छे. –तमारा उत्साह माटे
धन्यवाद! हजी पण आगळ वधो.
अमारो अमेरिकानो प५
अमेरिका जेवा देशमां वसता
आपणा जिज्ञासु साधर्मी, त्यां पण
गुरुदेवना प्रतापे सत्यनी केवी जिज्ञासा
टकावी राखे छे, ने भारतदेशमां आवीने
धर्मात्माओनां दर्शन करवानी केवी भावना
सेवे छे–ते अहीं रजु थता प५मां जोवा
मळशे. न्युयोर्कथी प५ लखनार भाईश्री
प्रबोधकुमार रमणीकलाल शाह आपणा
बालविभागना सभ्य (नं. १९९१) छे;
अने देशमांथी तेमनी माता तेमने धर्मनी
प्रेरणा आप्या करे छे. रत्न जयंति प्रसंगे
न्युयोर्कथी प५ द्वारा पोतानी भावना व्यक्त
करतां तेओ लखे छे के–“हे मारा वहाला
गुरुदेव! हे बाळजीवोना आधार! हे
भवाटवीमांथी बचावनार! हे डुबेला
सत्यने बहार लावनार गुरुदेव! आपने शुं
उपमा आपुं? बीजा डोकटरो तो कदाच जड
शरीरना रोग मटाडे छे त्यारे आप तो
एवा अलौकिक डोकटर छो,–के जे चैतन्य
चैतन्यने भूलीने भ्रांतिरूपी रोग लागु
पडयो छे तेने साचुं स्वरूप समजावीने
भ्रांतिरूपी रोग मटाडो छो ने भवभ्रमणना
दुःखथी छोडावो छो. जड–चेतननुं ने स्व–
परनुं पृथक्करण करावीने, महान
चैतन्यशक्तिने ओळखावनारा आप ज
साचा विज्ञानी छो. आजकाल अवकाशया५ा
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