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अमूल्य वानगी तेमां अपाय छे तेनो लाभ हजारो जिज्ञासुओ होंशे होंशे लई रह्या छे.
विशाळ संख्यामां अध्यात्मरसिक वांचकवर्ग ए ‘आत्मधर्म’ नुं खास गौरव छे.
कई रीते जैनशासननी वधु ने वधु प्रभावना थाय, ने कई रीते वधु ने वधु जिज्ञासु
जीवो तेनो लाभ ल्ये–एवी भावनाथी तेनुं संपादन थाय छे. अने अमने संतोष छे के
भारतना जिज्ञासु जीवोए पण आत्मधर्मने एवा ज प्रेमथी ने बहुमानथी अपनाव्युं छे.
साची हकीकत शुं छे–ते वात शास्त्राधारपूर्वक स्पष्ट करवामां आवी, –ते वांचीने आपणा
सेंकडो–हजारो शिक्षित भाई–बहेनोने जैनसिद्धांत प्रत्ये विश्वासनुं कारण थयुं छे, ने अनेक
जीवोनी शंकाओनुं निराकरण थयुं छे. आजना वातावरणमां केटलाय जीवो एवी द्विधामां
रहेता हता के आजनुं विदेशी विज्ञान कहे छे ते साचुं हशे के आपणा जैन सिद्धांतमां कह्युं छे
ते साचुं हशे? –आवी परिस्थितिमां सिद्धांत अनुसार सत्य हकीकत जाणवाथी केटलाय
जीवोनी द्विधा मटी छे, ने ते संबंधी अनेक प
आत्मधर्मना विकास माटे आवता सूचनोने प्रेमपूर्वक आवकारे छे... अने एवा सूचनो
मोकलवा माटे सौने हार्दिक आमं
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