Atmadharma magazine - Ank 309
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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सती चंदनबाळानी कथा अमारे वांचवी छे–एम एक बहेन लखे छे.
तेमने जणाववानुं के हजी आपणे ते पुस्तक छपाव्युं नथी परंतु आवता
अंकमां चंदनबाळानी टूंकी कथा आपीशुं.
* रत्नचिंतामणि–उत्सव कई रीते उजवाय?
आत्मा पोते अनंतगुणथी भरेलो रत्नचिन्तामणि छे, तेनो स्वानुभव
करवो ए साचो रत्नचिन्तामणि–महोत्सव छे. (एम गुरुदेवे मुंबईमां कह्युं हतुं.)
* आत्मानी आंख केम ऊघडे?
ज्ञान ते आत्मानी आंख छे. स्वानुभववडे ते आंख ऊघडे छे. एनी रीत
आचार्यदेवे समयसारमां बतावी छे.
आत्मा एवो चिंतामणी चैतन्यरत्न छे के जेने लक्षमां लईने चिंतवतां
सम्यग्दर्शन वगेरे रत्नोनी प्राप्ति थाय छे. जगत एवा चैतन्यरत्नने पामो.
ज्ञान आत्माना चक्षु छे. स्वानुभववडे ते ज्ञानचक्षु उघडे छे. एवा
ज्ञानचक्षु खोलवानो उपाय आचार्य भगवाने बताव्यो छे. ते समजवा माटे
वांचो – ‘ज्ञानचक्षु’ पुस्तक.
* अश्विनकुमार जैन (मोरबी) वीतरागदेवना दर्शनथी प्रमोद तथा बाल विभाग
प्रत्येनी तमारी उत्तम लागणीओ बदल धन्यवाद! धार्मिक भावनाओमां
उत्साहथी खूब खूब आगळ वधो.
* हसुबेन (जोरावरनगर) लखे छे के बालविभागनां आंबामां सम्यकत्वादि
सूचक केरी मळतां आनंद थयो. आ केरी तो एवी के सदाय खवाय. एनो स्वाद पण
एवो के जे चाखतां सिद्धपद पमाय! (साथे बे बहेनोनो संवाद पण मळ्‌यो छे.)
* आत्मिक संपत्ति
केटलाय माणसो आज एम समजी रह्या छे के आर्थिक संपत्तिमां आगळ
वधी रहेलुं अमेरिका बहु सुखी हशे! परंतु ते केटली भ्रमणा छे –एनो ख्याल
खुद अमेरिकाना प्रमुख निकसनना शब्दोथी आवी शकशे: तेमणे पोताना
प्रवचनमां हमणां कह्युं हतुं के– ‘आपणे (अमेरिकनो) भौतिक रीते संपन्न
बन्या छीए पण