Atmadharma magazine - Ank 309
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: ३४ : आत्मधर्म : द्वि. अषाड : २४९५
* ‘आत्मधर्म’ एटले शुं?
आत्मधर्म एटले आत्मानो स्वभाव; आत्मा उपयोगस्वरूप छे ते
उपयोगनुं शुद्ध उपयोगरूपे रहेवुं तेनुं नाम धर्म; अथवा सम्यग्दर्शन–ज्ञान–
चारि
त्र ते आत्मानो धर्म.
* सम्यग्दर्शन एटले शुं?
सम्यक्दर्शन एटले साचुं दर्शन; आत्मानुं जेवुं स्वरूप छे तेवुं देखवुं
(श्रद्धवुं) ते आत्मानुं सम्यक्दर्शन छे; अने ते ज धर्मनुं मूळ छे, केमके साचुं
स्वरूप देखे तो ज तेने साधी शके.
* तीर्थंकर एटले शुं?
तीर्थने जे करे ते तीर्थंकर, तीर्थ एटले सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप
मोक्षमार्ग; ते पोतामां जे प्रगट करे तेणे पोताना आत्मामां तीर्थनी रचना करी.
अने विशिष्ट पुण्यप्रकृतिवडे एवा रत्न
त्रयरूप धर्मतीर्थनो उपदेश देनारा
ऋषभदेवादि भगवंतो ते तीर्थंकरो छे. परमार्थे पोताना आत्मामां रत्नत्रयरूप
तीर्थनो कर्ता आत्मा पोते ज छे.
* आत्मधर्ममां पुराणकथाओ आवे छे तेमां अनेक जीवोना आवता भवो विषे लख्युं
होय छे तो तेनी केवी रीते खबर पडी?
भाई, पुराणशास्त्रो गणधर भगवंतोनी परंपराथी चाल्या आवे छे.
भगवान त्रणकाळने जाणनारा हता; अनेक संत–मुनिओ पण पोतानी विशेष
ज्ञान–शक्तिथी भूतकाळ ने भविष्यकाळनी वात जाणी शकता. ए बधुं पुराणोमां
वर्णव्युं छे, ने तेना आधारे ज कथाओ लखाय छे.
* हुं आवता भवमां शुं थईश?
तमे जीव छो, ने जीव ज रहेशो. बाकी धर्ममां जे जीवो रस लेता होय ते
जीवो माटे अनुमान करी शकाय के आवता भवमां ते देवलोकमां जशे.