: ३८ : आत्मधर्म : द्वि. अषाड : २४९५
साची परंपरा के नवीन मार्ग?
[पं. टोडरमलजीए अनेक प्रकारनी स्पष्टता करी छे तेमां कुळपरंपरा संबंधी
पण सुंदर स्पष्टता करी छे ते अहीं आपीए छीए.]
कोई जीव तो कुळक्रमवडे ज जैनी छे पण जैनधर्मनुं स्वरूप जाणता नथी, मात्र
कुळमां जेवी प्रवृत्ति चालती आवे छे ते ज प्रमाणे तेओ प्रवर्ते छे. ते तो जेम अन्यमति
पोताना कुळधर्ममां प्रवर्ते छे ते ज प्रमाणे आ पण प्रवर्ते छे.
वळी जो पिता दरिद्री होय अने पोते धनवान थाय तो त्यां कुळक्रम विचारी
पोते दरिद्री रहेतो नथी, तो धर्ममां कुळनुं शुं प्रयोजन छे? पिता नर्कमां जाय अने पुत्र
मोक्ष जाय छे तो त्यां कुळक्रम क््यां रह्यो? जो कुळ उपर ज द्रष्टि होय तो पुत्र पण
नर्कगामी थाय; माटे धर्ममां कांई कुळक्रमनुं प्रयोजन नथी, पण शास्त्रोना अर्थने
विचारी, काळदोषथी जैनधर्ममां पण पापी पुरुषोए कुदेव–कुगुरु–कुधर्म सेवनादिरूप वा
विषय–कषायना पोषणादिरूप विपरीत प्रवृत्ति चलावी होय तेनो त्याग करी,
जिनआज्ञाअनुसार प्रवर्तवुं योग्य छे.
प्रश्न: परंपरा छोडीने नवीन मार्गमां प्रवर्तवुं योग्य नथी.
उत्तर: जो पोतानी बुद्धिथी नवीन मार्गमां प्रवर्ते तो ते योग्य नथी, परंतु
परंपरा अनादिनिधन जैनधर्मनुं स्वरूप शास्त्रोमां प्ररूपण कर्युं छे, ते प्रवृत्ति छोडीने
वच्चे कोई पापी पुरुषोए अन्यथा प्रवृत्ति चलावी होय, तेने परंपरामार्ग केवी रीते
कहेवाय? तथा तेने छोडी पुरातन जैन शास्त्रोमां जेवो धर्म प्ररुप्यो होय तेम प्रवर्ते तो
तेने नवीनमार्ग केम कहेवाय? ... कुळसंबंधी विवाहादिक कार्योमां तो कुळक्रमनो विचार
करवो, पण धर्मसंबंधी कार्योमां तो कुळनो विचार न करवो, परंतु जेम सत्यधर्ममार्ग छे
तेम प्रवर्तवुं योग्य छे. (मोक्षमार्ग प्रकाशक पृ: २१९–२२०)