Atmadharma magazine - Ank 310
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: ३२ : आत्मधर्म : श्रावण : २४९प
चौदस प्रौषध–उपवासना दिवसे
एकांतमां रहे छे अने
निष्परिग्रही मुनिसमान शोभे छे.
(९) ते श्रावक परिग्रहनी मर्यादानो
विचार करे छे अने भोग–
उपभोगनी मर्यादानो पण
हंमेशा नियम करे छे. मुनिवरोने
आहारदाननी भावना भावे छे
अने ज्यारे मुनिओने
आववानी वेळा वीती जाय
त्यारे ज पोते योग्य शुद्ध
भोजन करे छे.
(१०) ए रीते धर्मी–श्रावक सदा उत्तम
कार्य करे छे अने पापथी सदाय
डरता रहे छे. अने ज्यारे
मरणनो काळ नजीक जाणे त्यारे
समस्त परिग्रहनी ममताने
छोडे छे.
(११) बुधजन कहे छे के अमे एवा
उत्तम पुरुषोना चरणोना सेवक
छीए; ते धर्मात्मा नियमथी
सुरपद पामीने अल्पकाळमां ज
मोक्ष पामे छे.
(पंचमढाळ पूरी)
• • •
जीव क्रोधथी अंध बनीने पोते पोताने केवुं नुकशान करे छे तेनुं एक स्थूळ
द्रष्टांत–बे माणसोने एकबीजा साथे दुश्मनावट थई; बंनेनुं घर आजुबाजुमां ज हतुं.
एके क्रोधथी विचार्युं के हुं सामानुं घर बाळी नांखुं. ते अनुसार सामानुं घर बाळी
नांखवा तेना घरमां अग्नि फेंकीने भाग्यो. पण बीजो माणस ते देखी गयो; पोतानुं घर
बळतुं होवा छतां क्रोधथी तेणे विचार्युं के, जो घर ठारवा रोकाईश तो आ शत्रु भागी
जशे; माटे तेने पकडुं. एम तेने पकडवा तेनी पाछळ गयो; अने पछी पाछो आवीने
जुए छे तो घरनुं नामनिशान न मळे....आगमां बधुंय भस्मीभूत! ते देखीने तेने
पस्तावो थयो के अरेरे! शत्रु उपर क्रोध करवा करतां में पोते मारा घरनी आग ठारी
होत तो मारुं घर न बळत....तेम जीवने कांईक प्रतिकूळतानो प्रसंग आवतां सामा
उपर ते क्रोध करे छे, ए क्रोध वडे पोते पोताना स्वघरनी शांतिने बाळे छे; पण
क्रोधाग्नि बुझावीने पोते पोताना शांत परिणाममां रहे तो एने कांई ज नुकशान न
थाय, ने पोतानी आत्मिकशांति मळे. आ रीते प्रतिकूळतामां क्रोध–ए दुःखथी बचवानो
उपाय नथी, पण शांति ए ज दुःखथी बचवानो उपाय छे. जगतनो कोई शत्रु तारी जे
शांति ने हणवा समर्थ नथी ते शांतिने तुं पोते ज क्रोध वडे केम हणे छे?
ज्यां क्रोध छे त्यां दुःख छे.....ज्यां शांति छे त्यां सुख छे.