Atmadharma magazine - Ank 310
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: श्रावण : २४९प आत्मधर्म : ३१ :
(पांचमी ढाळनो अर्थ)
(१) श्रद्धा जेना चित्तमां छे एवा
व्रतधारक जीवो तिर्यंच अने
मनुष्य ए बे गतिमां ज होय छे.
ते अणुव्रतधारक जीवो अणगळ
पाणी पीता नथी अने
रात्रिभोजन छोडे छे.
(२) मुखमां अभक्ष्य वस्तु खाता
नथी, त्रिकाळ जिनभक्तिमां
लयलीन रहे छे, मन–वचन–
तनथी कपट छोडे छे, अने
पापकार्यो करवा–कराववा के
अनुमोदवानुं छोडे छे.
(३) ते सम्यग्द्रष्टिने जेटला कषाय
उपशमे छे तेटला प्रमाणमां
हिंसादिनो त्याग होय छे. कोई
तो सात व्यसन (जुगार–मांस–
मदिरा–शिकार–चोरी–वेश्या अने
परस्त्री) तेनो ज त्याग करे छे,
अने कोई अणुव्रत धारण करीने
तपमां लागे छे.
(४) ते श्रावक कदी त्रस जीवने मारे
नहीं, अने स्थावर जीवोनो पण
वगर प्रयोजने संहार करे नहीं,
अन्यना हित वगर जूठ बोले
नहीं (अर्थात् कोई धर्मात्माथी
दोष थई गयो होय तेने
बचाववा, अथवा कोई
निरपराधी फसाई जतो होय तेने
उगारवा; एवा प्रसंग सिवाय ते
जूठ बोलता नथी. अने ते पण
अन्यनुं अहित थाय तेवुं
बोलता नथी) अने सत्य
सिवाय कदी मुख खोलता नथी.
(प) जेनी मनाई नथी एवा पाणी
अने माटी सिवाय बीजी कोई
वस्तु दीधा वगरनी कदी लेता
नथी; पोतानी विवाहीत नारी
सिवाय बीजी नानी स्त्रीओने
बहेनसमान, अने मोटीने
मातासमान समजे छे.
(६) तृष्णानुं जोर संकोचे छे अर्थात्
ममता घटाडीने अधिक परिग्रहने
छोडे छे, परिग्रहनी मर्यादा करे
छे; दिशाओमां गमननी के
कोईने बोलाववा–मोकलवानी
मर्यादा करे छे अने ते मर्यादाथी
बहार पग मुकता नथी.
(७) पापथी डरनारा ते श्रावक
दिग्व्रतमां नक्की करेली
मर्यादामांथी पण नगर–तळाव के
नदी वगेरेनी मर्यादा राखे छे,
कोई प्रकारना अनर्थदंड (खोटा
पाप, निष्प्रयोजन हिंसादि)
करता नथी, अने क्षणे क्षणे
जिन–धर्मनुं स्मरण करे छे.
(८) द्रव्य–क्षेत्र–काळ अने भावनी
शुद्धिपूर्वक समतारूप सामायिकने
ध्यावे छे; आठम