Atmadharma magazine - Ank 310
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: ३० : आत्मधर्म : श्रावण : २४९प
पं. बुधजनरचित छहढाळा
• (पांचमी ढाळ)
अगाउनी चार ढाळ अनुक्रमे आत्मधर्म अंक ३०४,
३०६, ३०८A तथा ३०९ मां आवी गई छे. आ पांचमी
ढाळमां सम्यग्दर्शन पछी श्रावकनां बार व्रतो वगेरेनुं
कथन कर्युं छे.
मनहरण छंद
तिर्यंच मनुष दो गतिमें
व्रतधारक श्रद्धा चित्तमे;
सो अगलित–नीर न पीवें,
निशिभोजन तजें सदीवेांा १ा
मुख वस्तु अभक्ष न खावें
जिनभक्ति त्रिकाल रचावें;
मन–वच–तन कपट नीवारें;
कृत–कारित–मोह सम्हारेा २ा
जैसे उपशमत कषाया,
तैसा तिन त्याग कराया;
कोई सात व्यसनको त्यागें,
कोई अनुव्रत तप लागेंा ३ा
त्रस जीव कभी नहीं मारें,
न वृथा थावर संहारे;
परहित बिन जूठ न बोलें,
मुख सत्य विना नहीं खोलेंा ४ा
जल–मृत्तिका बिन धन सबही,
बिन दिये न लेवें कबही;
व्याही वनिता बिन नारी,
लघु बहिन बडी महतारीा पा
तुष्णाका जोर संकोचें,
ज्यादे परिग्रहको मोचें;
दिशिकी मर्यादा लावें,
बाहर नहीं पांव हलावेंा ६ा
तामें भी पुर सर सरिता,
नित राखत अघसे डरता;
सब अनर्थदंड न करते,
क्षण क्षण जिनधर्म सुमरतेा ७ा
द्रव्य–क्षेत्र– काल शुभ भावै,
समता सामायिक ध्यावै;
प्रौषध एकाकी हो है,
निष्किंचन मुनिज्यों सोहैा ८ा
परिग्रह–परिणाम विचारें,
नित नेम भोगका धारें;
मुनि आवन वेळा जावे,
तब योग्य असन मुख लावेा ९ा
यों उत्तम कार्य करता,
नित रहत पापसे डरता;
जब नीकट मुत्यु निज जाने,
तबही सब समता भानेा १०ा
ऐसे पुरुषोत्तम केरा
बुधजन चरणोंका चेरा,
वे निश्चय सुरपद पावें
थोडे दिनमें शिव जावेंा ११ा