Atmadharma magazine - Ank 310
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: श्रावण : २४९प आत्मधर्म : ३५ :
होवानो संभव छे. १८प०० वर्ष पछी छेल्ला मुनिए समाधिमरण कर्या बाद
थोडा ज वखतमां पंचमकाळ पूरो थईने छठ्ठो आरो शरू थशे; अने त्यारे
भरतक्षेत्रमां मुनिदशा वगेरेनो लोप थई जशे.
प्रश्न:– जैनमार्ग सिवाय बीजा संप्रदायोमां सम्यग्दर्शन लभ्य छे नहीं? –केमके
सम्यग्दर्शन तो चारे गतिमां मानवामां आव्युं छे
उत्तर:– चारे गतिमां सम्यग्दर्शन होई शके छे–ए वात खरी, –पण जैन सिवाय बीजा
मार्गमां सम्यग्दर्शन कदी होतुं नथी. चारमांथी कोईपण गतिमां जे जीव
सम्यग्दर्शन पाम्यो छे ते जीव जैनमार्गमां आवी ज गयेलो छे; केमके
जैनमार्गमां अरिहंतदेवे जेवो आत्मस्वभाव कह्यो छे तेवा आत्मस्वभावनी
अनुभूति करे त्यारे ज सम्यग्दर्शन थाय छे.
जैनपाठशाळा:– घाटकोपर, राजकोट वगेरे अनेक स्थळे जैन पाठशाळा चालु होवाना
समाचार जाणीने आनंद थाय छे. दरेक गामे जेन पाठशाळा द्वारा बाळकोमां
धर्मसंस्कार आपवानुं अत्यंत जरूरी छे. आपना गाममां पण पाठशाळा चालु
करो.
केटलाक कोलेजियन अने बीजा घणाय सभ्यो लखे छे के आत्मधर्म हाथमां
आवतां बधुं काम छोडीने ते वांचवा बेसी जाउं छुं, आत्मधर्ममां एवो रस पडे
छे के बीजुं बधुं भूली जवाय छे. सोनगढथी दूर होवा छतां आत्मधर्म हाथमां
आवतां जाणे सोनगढमां होईए एवुं लागे छे. खरेखर, आत्मधर्म द्वारा
अमने गुरुदेवनी उत्तम प्रसादी मळे छे.
जय जिनेन्द्र
“अनेकान्त..........झीन्दाबाद!”
परथी भिन्न आत्मानो अनुभव करावे ते साचो अनेकान्त