: ३६ : आत्मधर्म : श्रावण : २४९प
वीतरागविज्ञान–प्रश्नोत्तर (पृ. १२ थी चालु)
२प२. सुख दुःखनुं कारण शेमां छे?
सुख–दुःखनुं कारण जीवमां छे, जडमां
नथी.
२प३. आत्मा केवो छे.
आत्मा अतीन्द्रिय आनंदथी भरेलो
भगवान छे.
२प४. संवर शेनाथी थाय छे?
सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रवडे संवर
थाय छे.
२पप. जीव सुखी–दुःखी कई रीते थाय छे.
पोताना स्वभावने भूलीने विपरीत
भाववडे ते दुःखी थाय छे, ने
स्वभावनुं भान करीने एकाग्र थतां
सुखी थाय छे.
२प६. बीजाने सुख–दुःखनुंं कारण माने
तो शुं थाय?
तो बीजा उपरना राग–द्वेष कदी छूटे
नहि ने दुःख मटे नहि.
२प७. शरीरनी प्रतिकूळता जीवने नडे छे?
ना; सातमी नरकनी प्रतिकूळता वच्चे
पण जीवो सम्यग्दर्शन पामे छे.
२प८. तो मिथ्याद्रष्टिने शुं नडे छे?
देहबुद्धिनो तेनो ऊंधो भाव ज तेने
अंतर्मुख थवा देतो नथी.
२प९. प्रतिकूळता वच्चे सम्यग्दर्शन थाय?
हा; अंदरमां हुं ज्ञानस्वरूप छुं एम
लक्ष करे तो प्रतिकूळता वखतेय
सम्यग्दर्शनादि थई शके छे.
२६०. बहारनी अनुकूळता सम्यग्दर्शन
पामवामां मदद करे?
ना; बहारनी बधी अनुकूळता होवा
छतां
जो पोते अंतर्लक्ष न करे तो सम्यग्दर्शन
थतुं नथी.
२६१. आ सिद्धांत समजीने शुं करवुं?
संयोग सामे जोवानुं छोडीने स्वभाव
सामे जोवुं.
२६२. अगृहीत मिथ्यात्व एटले शुं?
आत्माना साचा स्वरूपने भूलीने
विपरीत मान्युं ते.
२६३. गृहीतमिथ्यात्व एटले शुं?
कुदेव–कुगुरु–कुधर्मनुं सेवन करवुं ते.
२६४. जीवे कयुं मिथ्यात्व पूर्वे छोडयुं छे?
गृहीतमिथ्यात्व छोडयुं, पण अगृहीत न
छोडयुं.
२६प. अगृहीत मिथ्यात्व केम न छूटयुं?
चेतनस्वरूप आत्मानो अनुभव न कर्यो
तेथी.
२६६. जीवनुं संसारभ्रमण केम न मटयुं?
मिथ्यात्व न छोडयुं ने सम्यक्त्व न कर्युं
नथी.
२६७. सर्वज्ञ भगवाने केवो आत्मा जोयो
छे?
भगवाने देहथी भिन्न चैतन्यस्वरूप
आत्मा जोयो छे. (विनमूरति
चिन्मूरति, अर्थात् मूर्तपणा वगरनो
चैतन्यमूर्ति आत्मा छे.)
२६८. मनुष्यलोकमां अत्यारे कोई
सर्वज्ञभगवान छे?
हा; सीमंधरादि लाखो सर्वज्ञभगवंतो
विचरे छे.
२६९. कया तत्त्वो जाणवा प्रयोजनभूत
छे?