Atmadharma magazine - Ank 310
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 39 of 48

background image
: श्रावण : २४९प आत्मधर्म : ३७ :
जीव, अजीव, आस्रव, बंध, संवर,
निर्जरा, मोक्ष–आ सात तत्त्वोनुं ज्ञान
प्रयोजनभूत छे.
२७०. सात तत्त्वोमांथी शत्रु कोण? मित्र
कोण?
आस्रव ने बंध शत्रु जेवा छे; संवर
निर्जरा–मोक्ष मित्र जेवा छे.
२७१. सात तत्त्वोमां शुद्धद्रष्टिथी कोण
उपादेय छे?
शुद्धद्रष्टिथीशुद्ध जीव ज उपादेय छे.
२७२. सात तत्त्वोमां सुख–दुःखनां कारण
कोण छे?
आस्रव ने बंध दुःखनां कारण छे;
संवर–निर्जरा सुखनां कारण छे.
२७३. धर्मात्माए केवो अनुभव करवो?
‘हुं उपयोगस्वरूप जीव छुं’ एवो.
२७४. देहबुद्धि क्यारे छूटे?
उपयोगस्वरूप आत्मानो अनुभव करे
त्यारे.
२७प. देहनी क्रिया ते संवर छे?
ना; सम्यग्दर्शनपूर्वकनी शुद्धता ते
संवर छे.
२७६. सुखनो स्वाद क्यारे आवे?
मोक्षमार्ग कयारे थाय?
परथी भिन्नता जाणीने स्वमां ठरे
त्यारे.
२७७. जाणनारतत्त्व ते जडनी क्रिया करे?
ना; जो जडनी क्रिया करे तो ते जड
थई जाय.
२७८. आत्मा शरीररूप छे?
ना; आत्मा सदा उपयोगस्वरूप छे.
२७९. अजीवनी क्रिया कई रीते थाय छे?
अजीवमांय अनंत शक्ति छे, तेनाथी
तेनी क्रिया थाय छे.
२८०. जगतमां चेतन द्रव्य कया? ने
अचेतन कया?
एक जीव चेतन; बाकीनां पांच
अचेतन.
२८१ जगतमां मूर्त द्रव्यो कया? ने अमूर्त
कया?
एक पुद्गलद्रव्य मूर्त; बाकीनां पांच
अमूर्त.
२८२. आत्मा केवो छे?
आत्मा सर्वज्ञस्वभावी महान पदार्थ
छे; तेनामां ज आनंद छे; बीजा कोई
पदार्थमां ज्ञान–आनंद नथी, तेथी
आत्मा अनुपम छे.
२८३. आवा आत्माने कई रीते जाणी
शकाय छे?
पोताना अनुभव वडे जाणी शकाय छे.
२८४. जीवनी आंख कई?
उपयोग ते जीवनी आंख छे.
२८प. शुभक्रियाओ धर्मनुं कारण थाय
छे? ना.
२८६. शुद्धजीवस्वभावनो अनुभव करतां
शुं थाय छे?
आस्रव–बंध टळे छे, ने संवर–निर्जरा–
मोक्ष प्रगटे छे.
२८७. वीतरागवाणीनो मूळ मुदे शुं छे?