: ३८ : आत्मधर्म : श्रावण : २४९प
जीव अजीवनुं भेदज्ञान करीने
वीतराग थवुं ते. (वीतरागविज्ञान)
२८८. जीवे शेनो विचार नथी कर्यो?
पोताना स्वरूपनो साचो विचार कदी
नथी कर्यो.
२८९. जीवनी चाल केवी छे? अजीवनी
चाल केवी छे?
जीवनी चाल चेतनरूप छे; अजीवनी
चाल जडरूप छे.
२९०. अरिहंतनुं नाम लेवाथी
मिथ्यात्व छूटी जाय?
ना; तेमनुं स्वरूप ओळखे तो
मिथ्यात्व छूटे.
२९१. अज्ञानी जीव शेमां अहंपणुं करे
छे? शरीरमां ने रागमां.
२९२. जीवे अहंपणुं शेमां करवुं
जोईए?
पोताना उपयोगस्वरूपमां
(अहंपणुं एकत्वबुद्धि)
२९३. अरिहंत–सिद्ध वगेरेनी साची
ओळखाण क्यारे थाय?
उपयोगस्वरूप आत्माने ओळखे
त्यारे.
२९४. देह वगर ने खोराक वगर
आत्मा जीवी शके?
हा; आत्मा सदा उपयोग वडे जीवे
छे.
२९प. आत्मा शेना वगर जीवी न
शके?
उपयोग वगर एक क्षण पण जीवी
न शके.
२९६. शरीर वगरनो के राग वगरनो
जीव होई शके?
हा.
२९७. उपयोग वगरनो जीव होई
शके?
ना.
२९८. फरी फरीने घूंटवा जेवुं शुं छे?
भेदविज्ञान.
२९९. साचा सामायिक ने प्रतिक्रमणादि
धर्म क्यारे होय?
मिथ्यात्वने छोडीने सम्यक्त्व करे
त्यारपछी.
३००. आत्माने शरीरथी जुदो जाण्या
वगर सामायिक–प्रतिक्रमण होय?
ना.
(विशेष आवता अंके)
अनेकान्त।......झिन्दाबाद!