Atmadharma magazine - Ank 310
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: श्रावण : २४९प आत्मधर्म : ३९ :
आत्माना प्रगट अनुभवनी रीत
समयसार गा. १४४नुं प्रवचन (२)
पात्र जीव आत्माना ज्ञानस्वभावनो निर्णय करे छे–ए वात
पृ. १३ परना लेखमां आपे वांची. ए प्रमाणे जेणे
सम्यक्दर्शन प्रगटया पहेलां श्रुतज्ञानना अवलंबनना जोरे
आत्माना ज्ञानस्वभावने अव्यक्तपणे लक्षमां लीधो छे, ते
हवे प्रगटरूप लक्षमां ल्ये छे–अनुभव करे छे–आत्मसाक्षात्कार
अर्थात् सम्यग्दर्शन करे छे; –कई रीते? ते अहीं बतावे छे.
पछी आत्मानी प्रगट प्रसिद्धिने माटे, पर पदार्थनी प्रसिद्धिनां कारणो जे
ईन्द्रिय अने मनद्वारा प्रवर्तती बुद्धिओ तेमने मर्यादामां लावीने जेणे मतिज्ञानतत्त्वने
आत्मसन्मुख कर्युं छे......” अप्रगटरूप निर्णय थयो हतो ते हवे प्रगटरूप कार्य लावे छे;
जे निर्णय कर्यो हतो तेनुं फळ प्रगटे छे.
आ ज्ञानस्वभावी आत्मानो निर्णय जगतना बधा आत्माओ करी शके छे.
बधा आत्माओ परिपूर्ण भगवान ज छे, तेथी बधा पोताना ज्ञानस्वभावनो निर्णय
करी शकवा समर्थ छे. जे पोताना आत्मानुं हित करवा मागे तेने ते थई शके छे. परंतु
जीवे अनादिथी पोतानी दरकार करी नथी. भाई रे! तुं कोण वस्तु छो, ते जाण्या विना
तुं करीश शुं? पहेलां आ ज्ञानस्वभावी आत्मानो निर्णय करवो जोईए. ए निर्णय
थतां अव्यक्तपणे आत्मानुं लक्ष आव्युं, पछी परलक्ष अने विकल्प छोडीने स्वलक्षे
प्रगट अनुभव केम करवो ते बतावे छे.
ईन्द्रिय अने मनथी जे परलक्ष थाय छे तेने फेरवीने मतिज्ञानने स्वमां एकाग्र
करतां आत्मा प्रगट प्रसिद्ध थाय छे एटले के अनुभव थाय छे; आत्मानो प्रगटरूप
अनुभव थवो ते ज सम्यग्दर्शन अने सम्यग्ज्ञान छे.
धर्म माटे पहेलां शुं करवुं?
आ कर्ताकर्म–अधिकारनी छेल्ली गाथा छे, आ गाथामां जिज्ञासुने मार्ग बताव्यो