उत्तर कहे छे के प्रथम स्वभाव समजवो ते ज धर्म छे. धर्म वडे ज संसारनो अंत आवे
छे; शुभभावथी धर्म थाय नहि अने धर्म वगर संसारनो अंत आवे नहि. धर्म तो
पोतानो स्वभाव छे, माटे पहेलां स्वभाव समजवो जोईए. शुभभाव थाय खरा, पण
ते कर्तव्य नथी. शुभ–अशुभभाव तो अनादिकाळथी करतो आवे छे, ते कांई धर्मनो
उपाय नथी. पण ते शुभ–अशुभभावथी रहित ज्ञानस्वभावी आत्मानी ओळखाण
करवी ते ज धर्म छे.
थाय छे, परंतु शुभभावथी धर्म थतो नथी एम जाणवुं. ज्यां सुधी कोई पण जड
वस्तुनी क्रिया अने रागनी क्रिया जीव पोतानी माने त्यां सुधी ते साची समजणना
मार्गे नथी.
लागे परंतु मार्ग तो साची समजणनो लेवो जोईए ने! साची समजणनो मार्ग ल्ये तो
सत्य समजाया वगर रहे ज नहि. जो आवा मनुष्यअवतारमां अने सत्समागमनायोगे
पण सत्य न समजे तो फरी सत्यना आवा टाणां मळवा दुर्लभ छे. हुं कोण छुं तेनी जेने
खबर नथी अने अहीं ज स्वरूप चूकीने जाय छे ते परभवमां ज्यां जशे त्यां शुं करशे?
स्वरूपना भान वगर शांति क्यांथी लावशे? आत्माना भान वगर कदाच शुभभाव
कर्या होय तो ते शुभना फळमां जडनो संयोग मळशे, शुभना फळमां कांई आत्मा नहीं
मळे. आत्मानी शांति तो आत्मामां छे, परंतु तेनी तो दरकार करी नथी.
जीवतां ज असाध्य छे. भले, शरीर हाले–चाले–बोले, पण ए तो जडनी क्रिया