Atmadharma magazine - Ank 310
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: ४० : आत्मधर्म : श्रावण : २४९प
छे. माणसो कहे छे के आत्मा न समजाय तो पुण्यना शुभभाव तो करवा के नहि? तेनो
उत्तर कहे छे के प्रथम स्वभाव समजवो ते ज धर्म छे. धर्म वडे ज संसारनो अंत आवे
छे; शुभभावथी धर्म थाय नहि अने धर्म वगर संसारनो अंत आवे नहि. धर्म तो
पोतानो स्वभाव छे, माटे पहेलां स्वभाव समजवो जोईए. शुभभाव थाय खरा, पण
ते कर्तव्य नथी. शुभ–अशुभभाव तो अनादिकाळथी करतो आवे छे, ते कांई धर्मनो
उपाय नथी. पण ते शुभ–अशुभभावथी रहित ज्ञानस्वभावी आत्मानी ओळखाण
करवी ते ज धर्म छे.
प्रश्न:– स्वभाव न समजाय तो शुं करवुं? समजतां वार लागे तो शुं करवुं?
उत्तर:– प्रथम तो रुचिथी प्रयत्न करे तेने आ वात न समजाय एम बने ज
नहि. समजतां वार लागे त्यां समजणना लक्षे अशुभभाव टाळी शुभभाव तो सहेजे
थाय छे, परंतु शुभभावथी धर्म थतो नथी एम जाणवुं. ज्यां सुधी कोई पण जड
वस्तुनी क्रिया अने रागनी क्रिया जीव पोतानी माने त्यां सुधी ते साची समजणना
मार्गे नथी.
सुखनो रस्तो साची समजण; विकारनुं फळ जडनो संयोग
जीवने जो आत्माने साची रुचि थाय तो ते समजणनो रस्तो लीधा वगर रहे
नहि; सत्य जोईतुं होय, सुख जोईतुं होय तो आ ज रस्तो छे. चारित्रदशामां भले वार
लागे परंतु मार्ग तो साची समजणनो लेवो जोईए ने! साची समजणनो मार्ग ल्ये तो
सत्य समजाया वगर रहे ज नहि. जो आवा मनुष्यअवतारमां अने सत्समागमनायोगे
पण सत्य न समजे तो फरी सत्यना आवा टाणां मळवा दुर्लभ छे. हुं कोण छुं तेनी जेने
खबर नथी अने अहीं ज स्वरूप चूकीने जाय छे ते परभवमां ज्यां जशे त्यां शुं करशे?
स्वरूपना भान वगर शांति क्यांथी लावशे? आत्माना भान वगर कदाच शुभभाव
कर्या होय तो ते शुभना फळमां जडनो संयोग मळशे, शुभना फळमां कांई आत्मा नहीं
मळे. आत्मानी शांति तो आत्मामां छे, परंतु तेनी तो दरकार करी नथी.
असाध्य कोण अने शुद्धात्मा कोण?
जे जीव अहीं ज जड साथे एकत्वबुद्धि करीने जड जेवो थई गयो छे, पोताने
भूलीने संयोगद्रष्टिथी मरे छे, असाध्यपणे वर्ते छे एटले चैतन्यस्वरूपनु भान नथी, ते
जीवतां ज असाध्य छे. भले, शरीर हाले–चाले–बोले, पण ए तो जडनी क्रिया