शुभरागथी स्वर्ग तो मळे छे–छतां तेमां दुःख?
जीव अज्ञानथी जेम पोताने देहरूप माने छे तेम रागादि भावो प्रगटपणे
दुःखदायक होवा छतां अज्ञानथी जीव तेने सुखरूप मानीने सेवे छे; आस्रवो जीवना
स्वभावथी भिन्न होवा छतां तेने पोतानुं स्वरूप मानीने सेवे छे. शुभरागथी मने कांई
लाभ थशे, –ते मोक्षनुं कारण थशे–एम जे माने छे तेणे आस्रवतत्त्वने आस्रवरूप न
जाणतां संवर–निर्जरारूप मान्युं; आस्रवो दुःखरूप होवा छतां तेने हितरूप मान्या; ते
अधर्म होवा छतां तेने धर्मनुं साधन मान्युं; ते बंधभाव होवा छतां तेने मोक्षनुं साधन
मान्युं; ते विपदा होवा छतां तेनाथी आत्मसंपदा प्राप्त थशे–एम मान्युं आ रीते
अज्ञानीने तत्त्वमां भूल छे. दुःख देनारा भावने सुख देनारा मानीने जे सेवे ते दुःखथी
क्यारे छूटे? अशुभराग ने शुभराग बंनेमां दुःख छे.
प्रश्न:– शुभथी स्वर्ग तो मळे छे?
उत्तर:– अरे भाई, स्वर्ग मळे तेमां आत्माने शुं? ए स्वर्गनी सामग्रीमां जेने
शुभ भासे छे ने ए सामग्री विनानुं अतीन्द्रिय आत्मसुख जेने नथी भासतुं ते
मिथ्याद्रष्टि छे. प्रवचनसारमां कुंदकुंदस्वामी कहे छे के पुण्यना फळथी तृष्णा वडे दुःखी
जीवो, मृगतृष्णामांथी जळनी माफक विषयोमांथी सुखने ईच्छे छे.....पुण्यशाळीओ पण
पापशाळीओनी माफक, विषयोने ईच्छता थका कलेश पामे छे. पुण्य पण पापनी जेम
दुःखनुं साधन छे. शुभ ने अशुभ (पुण्य ने पाप) बंने आत्मस्वभाव छे, बंने
शुद्धोपयोगथी विपरीत छे. आ रीते पुण्य अने पाप बंनेमां समानपणुं जे नथी मानतो,
ने पुण्यफळमां सुख मानीने तेनो मोह करे छे ते जीव मिथ्याद्रष्टिपणे संसारमां ज
रखडतो थतो दुःखने ज अनुभवे छे.
शांत–आनंदस्वरूप आत्मा, तेनाथी विरुद्ध पुण्यपापना भावो आकुळतारूप छे,
शुभरागने चेनरूप–हितरूप मानीने सेवे छे तेमां वीतरागी आत्मानो अनादर थाय छे.
अमृतस्वरूप आत्माना वेदनमां परम शांति छे, रागना वेदनमां जराय शांति नथी,
तेमां तो आकुळता ज छे, प्रगटपणे ते दुःख देनार छे; पण अज्ञानीने तेमां मजा लागे
छे, केमके आत्मानी साची शांति तो तेणे जोई नथी.
रमतगमतमां आनंद माने छे पण ए तो आकुळता छे, तने भ्रमथी तेमां सुख
लागे छे. अशुभमां तो दुःख छे ने शुभमांय दुःख छे, शुभ–अशुभ बंनेथी पार
चैतन्यस्वभाव ते ज सुख छे ने ते ज मोक्षमार्ग छे. (वीतरागविज्ञान भाग–र)
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श्री दिगंबरजैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट वती प्रकाशक अने
मुद्रक : मगनलाल जैन. अजित मुद्रणालय : सोनगढ (सौराष्ट्र) : प्रत २७००