Atmadharma magazine - Ank 311
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: भादरवो : २४९प आत्मधर्म : ९ :
श्रावण वद १० ना रोज सोनगढमां भाईश्री
धीरजलाल नाथालाल (मरघाबेन) ना मकानना
वास्तु प्रसंगे (समयसार गा. १६४–१६प)

आ आत्मा ज्ञानस्वरूप छे, क्रोधादि आस्रवो खरेखर तेनुं स्वरूप नथी. ए वात
कर्ता–कर्म अधिकारमां समजावी; ए रीते चैतन्यस्वरूप आत्मा अने रागादि आस्रवोनुं
भेदज्ञान कराव्युं.
हवे जीवने मिथ्यात्वादि आस्रवो थाय छे ते पोताना परिणामथी थाय छे,
भावआस्रव ते जीवनां परिणाम छे, तेमां जीवना परिणामनो अपराध छे, ते आस्रव
भावो जड नथी तेमज चेतननुं पण परमार्थस्वरूप ते नथी, एटले तेने ‘चिदाभास’
कहेवाय छे.
आवा राग–द्वेष–मोहरूप जे चिदाभास परिणाम छे तेनो कर्ता अज्ञानी ज थाय
छे, ज्ञानी नहीं. ज्ञानी तो पोताने चैतन्यस्वरूप ज अनुभवे छे. अतीन्द्रिय आंनदथी
भरेला पोताना चैतन्यतत्त्वने भूलीने अज्ञानी पोताने रागादिरूप अनुभवे छे; ते पोते
पोताना स्वरूपने भूल्यो छे. भूल ते जड नथी पण जीवना चिदाभास–परिणाम छे.
खरेखर ते चैतन्य नथी, पण चैतन्य जेवा देखाय छे. जोके छे तो चैतन्यभावथी जुदा,
पण अज्ञानीने तेनुं जुदापणुं भासतुं नथी एटले ते चिदाभास एवा मिथ्यात्वादि
भावोनो कर्ता थाय छे.
धर्मी जीवने पोताना श्रद्धा–ज्ञानमां रागादिनी जरापण भेळसेळ नथी. आवा
वीतरागी श्रद्धा–ज्ञान चोथा गुणस्थानथी ज शरू थई जाय छे. धर्मी जीवने श्रद्धा–
ज्ञानअनुभवमां पोतानो चैतन्यस्वभाव आव्यो छे; ते स्वभावमां, अने ते श्रद्धा–
ज्ञानमां रागादि परभावो जरापण नथी एटले आस्रवोनुं कर्तृत्व तेमां नथी. आ रीते
धर्मी जीवने आस्रवनो अभाव छे.