एकत्वविभक्त शुद्धात्मानी अनुभूति करवी–ते जिनशासननो सार छे; एवी
अनुभूति करनारे आत्ममंदिरमां भावश्रुतनी प्रतिष्ठा करी....अने एवी अनुभूतिना
निमित्तरूप समयसारादि जिनागमनी प्रतिष्ठा पण पू. कानजीस्वामीना प्रतापे आजे
भारतमां ठेर ठेर थई रही छे. आ भादरवा सुद बीजे सोनगढमां पण एक भव्य
विशाळ जिनागम मंदिरनी स्थापना माटेनुं शिलान्यास अत्यंत उल्लासभर्या वातावरण
वच्चे थयुं. ते प्रसंगना प्रवचनमां परमागमोनो अने तेना रचनारा वीतरागी संतोनो
परम महिमा करीने कह्युं के परमागमनुं हार्द शुद्धात्मानो अनुभव छे. आवा अनुभव
वडे आ संसारना उकळता दावानळथी छूटीने ज्यारे ज्ञानचेतनारूप थईए ने
शांतरसना वेदनमां आत्माने तरबोळ करीए, त्यारे परमागमना सम्यक् अभ्यासनुं
फळ पामीए......अने त्यारे ज भावश्रुत तथा द्रव्यश्रुतनी अपूर्व संधिपूर्वक आत्मामांथी
भक्तिना रणकार गूंजी ऊठे के–
धन्य दिव्यवाणी “ कारने रे, जेणे प्रगट कर्यो आत्मदेव...
जिनवाणी जयवंत त्रण लोकमां रे...
श्रुतप्रतिष्ठाना आ मंगल अवसरे याद आवे छे–
* विपुलगिरि पर दिव्यध्वनि वर्षावता ए वीरनाथ तीर्थंकर....
* याद आवे छे–विदेहक्षेत्रे जईने साक्षात् तीर्थंकरदेवना दर्शन करनारा ए संत.....
* याद आवे छे ‘वंदित्तु सव्वसिद्धे’ पूर्वक सयमसारादि जिनागम रचनारा ए संत....
* याद आवे छे–दिव्यध्वनिना प्रवाहने अच्छिन्न राखनारा ए गीरनारी संतो.....
* याद आवे छे–भरतक्षेत्रमां श्रुतनी प्रतिष्ठा करनारा ए रत्नत्रयधारी संतो....
* याद आवे छे–जेमना श्रीमुखथी परमागमरूप अमृत झरे छे एवा मुनिराज....
* याद आवे छे–पावन संस्मरणवडे भरतक्षेत्रमां दिव्यध्वनिने ताजी करनारा आ संत....
* अने याद आवे छे–जेनो अचिंत्य महिमा जिनवाणीना शब्दे शब्दमां भरेलो छे.
एवो शुद्ध आत्मवैभव.
ब्र. ह. जैन