क्षमापना
दसलक्षणधर्मनी आराधनानुं वीतरागीपर्व हमणां ज आपणे उजव्युं; क्रोधादि
कलुषता दूर करीने उत्तम क्षमाना अमृत वडे अंतरने पावन करवानो आपणे प्रयत्न
कर्यो. ए उत्तमक्षमाना मूळरूप आत्मअनुभव, तेनो उपदेश श्री देव–गुरुना प्रतापे
आपणने अहर्निश मळी रह्यो छे; अनेक साधर्मीओ आनंदथी–बहुमानथी ते झीली रह्या
छीए; अने ‘आत्मधर्म’ द्वारा ते वीतरागी अमृतनी धारा हजारो मुमुक्षुओने
पहोंचाडवा प्रयत्न करीए छीए.
आवा आत्मधर्मनी सेवा एटले जिनवाणी मातानी सेवा; तेमां
जिनवाणी अनुसार ऊंचामां ऊंचा लेखोनी पसंदगी करीने मुमुक्षुओने पीरसवामां
आवे छे. देव–गुरु–प्रत्येनी भक्तिथी अने साधर्मीओ प्रत्येना वात्सल्यथी ऊभरता
हृदये तेनुं दरेक पानुं लखवामां आवे छे. आम छतां अज्ञानवश माराथी तेमां क्यांय
भूल रही गई होय, के कोईपण प्रकारे कोईनुं हृदय माराथी दुभायुं होय, तो ते बदल
अंतःकरणपूर्वक हुं क्षमा चाहुं छुं. अने प्रार्थना करुं छुं के वीतरागी संतोना चरणमां मने
उत्तम क्षमानी आराधना प्राप्त थाओ. –हरि.
श्री समयसार अने नियमसार माटे सूचना
केटलाक वखतथी अप्राप्य एवा समयसार अने नियमसारनी गुजराती आवृत्ति
फरी छपाववानी विचारणा चाले छे. जिज्ञासुओनी मांगणी पूरता प्रमाणमां थशे तो
आ पुस्तको छपाववामां आवशे. तो जे जिज्ञासुओने के मुमुक्षुमंडळोने जेटली प्रतनी
जरूर होय तेटली प्रत अत्यारथी नोंधावी देवा विनंति छे, जेथी तेमनी जरूरीयात
मुजब प्रतो तेमने मळी शके. माटे आपने जेटला पुस्तकनी जरूर होय तेटला वेलासर
नाम–सरनामा सहित नीचेना सरनामे जणावशो.
(पुस्तकनी किंमत लागत करतां ओछी राखवामां आवशे, परंतु हमणां कोई
रकम एडवान्स मोकलवानी जरूर नथी.)
प्रकाशन विभाग
श्री जैन स्वाध्यायमंदिर ट्रस्ट
सोनगढ (सौाराष्ट्र)
श्री दिगंबर जैन स्वाध्याय मंदिरट्रस्ट वती प्रकाशक अने
मुद्रक : मगनलाल जैन अजित मुद्रणालय: सोनगढ (सौराष्ट्र) प्रत: २७००