Atmadharma magazine - Ank 312
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: ८ : आत्मधर्म : आसो : २४९प
एक हरिजन भाईनो भक्तिभरेलो पत्र
पू. गुरुदेवना प्रतापे आत्मधर्म द्वारा अने बालविभाग द्वारा हरिजन बंधुओ
पण केवा सरस धार्मिक संस्कार मेळवे छे–ते अहीं रजु थता तेमना एक पत्र परथी
ख्यालमां आवशे. पत्र लखनार भाई बगदाणा (तळाजा) ना छे, तेमनुं नाम छे
सत्यदेव जैन. तेमनी साथे बीजा पण पचास उपरांत भाईओ तत्त्वज्ञानमां रस लई
रह्या छे. तेओ लखे छे– ‘पूज्य स्वामीजीनी अथाग कृपाथी जे वस्तुस्वरूप समजायुं छे
ते तो अपूर्व छे; जेना लक्षे पुरुषार्थ सिद्ध करी स्वरूपमां रमणता वधारी, ज्ञानीओ जे
मोक्षमार्गे जई रह्या ते ज मार्गे आजे भारतभरना मुमुक्षुओ विचरी रह्या छे. ते
मार्गने शांतिनो के सुखनो मार्ग कही शकाय. तेवा मार्गे चालतां शीखवी आजे
अध्यात्मयोगी श्री पू. कानजी स्वामीए जैनसमाज उपर तो महान उपकार कर्यो छे.
तेमज अमारा हरिजनकुळमां पण पूज्य स्वामीजीना प्रवचनो द्वारा घणा भक्तो ए ज
मार्गे आगळ वधी रह्या छे. अमारा हरिजनकूळमां पण गुरुदेवनो महान उपकार छे.
आजे पंचमकाळमां मनुष्यने पोताना कर्तव्यनी खबर नथी; पोतानुं कर्त्तव्य शुं होई शके
तेनो विचार जीवे कदी कर्यो नथी. आजे पूज्य स्वामीजीनी अथाग कृपाथी पोताना
निजस्वरूपनी ओळखाण करी स्वघरमां वसी भक्तो जैनमार्गे जई रह्या छे, ते बदल
धन्यवाद. –श्री सत्यदेव जैन अने बीजा भक्तो.
(आ हरिजन भक्तो सोनगढथी वीतरागी जैनसाहित्य मंगावीने प्रेमपूर्वक
तेनो अभ्यास करे छे. हरिजन होवा छतां हरिना साचा मार्ग प्रत्ये–वीतरागमार्ग प्रत्ये
तेओ आकर्षाया–ते खरेखर तेमनुं महान भाग्य छे. आ सिवाय उमराळाना अनेक
हरिजन भाईओ पण तत्त्वज्ञानमां रस लई रह्या छे) ते सौने धन्यवाद. (संपादक)
(हरिजन भाईना आ पत्र उपरथी ए पण ख्याल आवशे के बालविभागने
लगता साहित्यना विकासनी केटली जरूर छे!)
• राजकोटथी स. नं. २२७२ रूपाबेन जैन लखे छे के–पू. गुरुदेवना प्रतापे
राजकोटमां अम बालमित्रो माटे पाठशाळा शरू थई छे; त्यां धर्म शीखवा माटे जाउं छुं;
अभ्यासमां बहु रस आवे छे ने रोज भगवानना दर्शन पण थाय छे. भगवानना
दर्शन कई रीते करवा ते अमने शीखडावे छे; तेमज जीव कोने कहेवाय ने अजीव कोने
कहेवाय ते पण हवे खबर पडे छे. अमने भणवामां बहु मजा आवे छे.
(बीजा गामना आगेवानो बाळकोने आवुं भणतर क्यारे आपशे?)
• सिद्धपर्यायने अने द्रव्यसामान्यने एक समयनो तादात्म्य संबंध छे.
• गुण–गुणीने नित्य तादात्म्य संबंध छे.
• ज्ञानने अने रागने तादात्म्यसंबंध नथी पण भिन्नता छे.