Atmadharma magazine - Ank 312
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: आसो : २४९प आत्मधर्म : ७ :
• मुंबईथी श्री मूलचंदभाई तलाटीए ‘दि. जैन रत्नत्रयदर्शनना तत्त्वामृत’ प्रत्ये प्रमोद
व्यक्त करीने केटलाक वचनामृत लखी मोकल्या छे, अने आ रीते अवारनवार
तेओश्री पोतानो उल्लास तथा तत्त्वप्रेम व्यक्त करे छे. तेओ लखे छे के–
• भूतार्थनयना भानथी भव्यो तरे भवभ्रमणथी,
व्यवहारनयना आश्रये छूटे नहीं भवचक्रथी.
• पर्यायद्रष्टिए जीवनी पर्यायमां अशुद्धता होवा छतां, द्रव्यद्रष्टिए शुद्धनयथी
आत्मा रागादिथी अत्यंत भिन्न, अविनाशी अने मुक्त छे –एवुं भेदज्ञान
सम्यग्द्रष्टिने निरंतर वर्ते छे. अने मुमुक्षुने ए ज उपादेय छे.
सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र विना निर्ग्रंथदशा उपलब्ध नथी; बाह्य–अंतर
निर्ग्रंथदशा वगर मुक्ति नथी. वीतराग जैनदर्शनमां रत्नत्रयधर्म ज मोक्षमार्ग छे.
पू. गुरुदेव अनेक वर्षोथी अमृतवाणीनी वर्षा वडे जैनदर्शनना आवा अपूर्व
आध्यात्मिक तत्त्वोनुं ज्ञान करावी रह्या छे.
• अमेरिकाना सभ्य श्री मधुबेन जैन, पोताना जन्मदिवस प्रसंगे गुरुदेव प्रत्ये
भक्ति व्यक्त करे छे अने बालविभागना सभ्य भाई–बहेनो प्रत्ये शुभेच्छा
सहित २८ मी जन्मदिन निमित्ते रूा. २८ मोकले छे. हजारो माईल दूर, अने
अमेरिका जेवा देशमां रह्या छतां भारतना उत्तम धर्मसंस्कारोने आपणा सभ्यो
भूलता नथी, ए प्रशंसनीय छे.
• बालविभागनी योजनाओ अने तेमां अपाता ईनामोना पुस्तको वगेरेथी खुशी
थईने एक मुमुक्षुबेन तरफथी रूा. २प) तथा पालेजना ईलाबेन मनसुखलाल
तरफथी रूा. १प) अने एक मुमुक्षु तरफथी रूा १०) आवेल छे गत मासनी
ईनामी योजनामां भाग लेनार ४०० सभ्योने “भगवान ऋषभदेव” नुं पुस्तक
मोकलवा माटे आ रकमोनो उपयोग करवामां आव्यो छे.
• ज्ञानचक्षु :–
पोताना निजपरमात्मतत्त्वने देखतां साचा ज्ञानचक्षु खुले छे.
ज्ञानी ज्ञानचक्षु वडे पोताना अंतरमां परमात्माने देखे छे.
• मद्रासथी शांतिभाई एम. भायाणी लखे छे के अमे ता. १२–१०–६९ ना रोज बे
बस करीने ९० भाईबहेनो पोन्नूरमलाई कुंदकुंदप्रभुनी तपोभूमिनां दर्शने गया
हता, ने घणा ज उल्लासथी दर्शनभक्ति कर्या हता. गुरुदेवे यात्रा वखते
कुंदकुंदप्रभुनी जे भक्ति गवडावेली ते ज भक्ति आत्मधर्ममांथी सौ मुमुक्षुओए
करी हती, ने ते भक्तिथी साक्षात् मुनिराजना दर्शन जेवा भावो उल्लसता हता;
गुरुदेवना प्रतापे आवी तपोभूमिनी यात्रा थई ने मुनिराजनी ओळखाण थई
तेथी सौ पोताने धन्य मानता हता ने भक्तिरसमां तरबोळ बन्या हता. नीचेनी
तळेटीमां नवी मोटी धर्मशाळा मद्रासी मुमुक्षुभाईओ बंधावी रह्या छे, तेनुं काम
चालु छे. जैनबाळपोथीना तालीम भाषांतर माटे प्रयत्न करी रह्या छीए.