: ६ : आत्मधर्म : आसो : २४९प
प्रश्न:– छठ्ठा–सातमागुणस्थानवर्ती दिगंबर मुनि अत्यारे हशे खरा?
उत्तर:– हा; आजे पण छठ्ठा–सातमा गुणस्थाने झूली रहेला करोडो दिगंबर मुनिवरो
आ मनुष्यलोकमां साक्षात् विचरी रह्या छे, ते बधाय परमेष्ठी भगवंतो छे;
तेमने नमस्कार हो.
प्रश्न:– पुरुषवेद, स्त्रीवेद, नपुंसकवेद तेमांथी कया वेदे मोक्ष थाय?
उत्तर:– त्रणमांथी एक्केय वेदे मोक्ष न थाय, वेदरहित एवी अवेददशाथी मोक्ष थाय. वेद
ते उदयभाव छे तेनाथी मोक्ष थई शके नहि, पण तेना क्षयथी मोक्ष थाय.
विशेषमां एटलुं समजवुं के तद्भवमोक्षगामी जीवने अंदरना भाववेदमां
नवमागुणस्थान सुधी त्रणमांथी कोईपण वेद संभवे छे. पण शरीरना
द्रव्यवेदमां तो तेने पुरुषवेद ज होय छे. आ बंने प्रकारना वेदनो अभाव थईने
मोक्षदशा थाय छे.
• दिवाळीनुं पर्व आपणे शा माटे उजवीए छीए?
आपणा अंतिम तीर्थंकर श्री महावीर भगवान मोक्ष पधार्या तेनी मंगल यादी
माटे दीवाळी पर्व उजवाय छे. दीवाळी ए मोजशोखनुं पर्व नथी पण ‘मोक्षनी
भावनानुं’ महान पर्व छे. २४९प वर्ष पहेलां बिहारप्रांतना पावापुरीना
उद्यानमां महावीर प्रभु आसो वद अमासना वहेला परोढिये मोक्ष पधार्या; ते
वखते दीपकोनी आवलि (हारमाळा) वडे त्यां मोक्षनो उत्सव उजवायो. ‘दीप–
आवलि’ एटले दीपावलि, तेनो अपभ्रंश ते दीवाळी. दीवाळी पर्व एटले
मोक्षनुं पर्व.
• शुभराग अने पुण्यना भाव ते कषाय छे के अकषाय?
ते कषाय छे.
• तो जे कषाय होय तेनाथी धर्म थाय के न थाय?
कषायथी धर्म न ज थाय; धर्म तो अकषाय वीतरागभाव छे.
प्रश्न:– आत्माने माटे युवानीनो काळ क्यो कहेवाय?
उत्तर– आत्मानी उग्र आराधनारूप मुनिदशानो जे काळ छे ते आत्माना धर्मने माटे
युवानीनो उत्तम काळ छे. धर्मनी शरूआतनो काळ (एटले के चोथुं गुणस्थान)
ते धर्मात्मानो बाल्यकाळ छे; अने केवळज्ञान प्रगटे ते धर्मनी प्रौढदशा छे. –आ
रीते धर्मानी त्रण दशा छे.