गुणगुणीभेदना विचाररूप राग) छे ते बधायने बाद करतां, तेना अभावरूप शुद्ध
ज्ञानसत्ता छे; पण जो रागना कोईपण अंशने रागरूपे न जाणतां ते रागना अंशने
ज्ञान साथे मेळवे, के ते रागअंशने ज्ञाननुं साधन माने, ते रागमां शांति माने, –तो ते
जीवे राग वगरना शुद्धज्ञानने जाण्युं ज नथी. –तेने नथी तो रागनुं साचुं ज्ञान, के नथी
जीवना ज्ञानस्वभावनुं साचुं ज्ञान;–जीव–अजीवना ज्ञान वगरनो ते मिथ्याद्रष्टि छे.
नांख. २१ प्रकारना उदयभावोनो कोई अंश ज्ञानमां नथी. आवा ज्ञानने सम्यग्द्रष्टि
अनुभवे छे. आवुं शुद्धज्ञान ते निजपद छे, ने बीजा बधाय पर पद छे एम हवेना
कळशमां कहेशे.
संवर–निर्जरारूप निर्मळपर्यायमां आत्मा अभेद छे, तेथी तेना आधारे
ज आत्मा कह्यो. द्रव्य अने पर्याय अभिन्न छे. निर्मळपर्यायरूप
उपयोग छे ते क्रोधथी भिन्न छे ने आत्मस्वभावथी अभिन्न छे.
क्रोधमां आत्मा नथी ने आत्मामां क्रोध नथी; उपयोगपर्यायमां आत्मा
छे ने आत्मामां ते उपयोग छे. उपयोग अंतर्मुख थईने आत्माने
अभेदपणे अनुभवे छे, तेमां आत्मानी प्रसिद्धि छे, पण तेमां क्रोधादिनी
उत्पत्ति नथी. आ रीते उपयोगने अने क्रोधादिने अत्यंत भिन्नपणुं छे–
एवुं उत्तम भेदज्ञान सिद्ध थयुं आवुं भेदज्ञान ते संवर छे, ने ते
मोक्षनो उपाय छे. तेथी आचार्यदेवे संवर–अधिकारनी शरूआतमां ते
भेदविज्ञाननी प्रशंसा करीने तेने अभिनंद्युं छे.