Atmadharma magazine - Ank 312
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: आसो : २४९प आत्मधर्म : १ :
वार्षिक लवाजम वीर सं. २४९प
चार रूपिया आसो
वर्ष २६ : अंक १२
दशा है हमारी एक चेतना विराजमान,
आन परभावनसों तिहुंकाल न्यारी है;
अपनो स्वरूप शुद्ध अनुभवे आठो जाम,
आनंदको धाम गुणग्राम विसतारी है;
परम प्रभाव परिपूरण अखंड ज्ञान,
सुखको निधान लखी आन रीति डारी है;
ऐसी अवगाढ गाढ आई परतीति जाके,
कहे दीपचंद्र ताको वंदना हमारी है.
(ज्ञानदर्पण : प)
अमारी दशा एक चेतनारूपे विराजमान छे, अने
अन्य परभावोथी त्रणेकाळ जुदी छे” –एम जे पोताना
स्वरूपने आठे पहोर शुद्ध अनुभवे छे, आनंदना धाम
गुणसमूहनो जेणे विस्तार कर्यो छे, परम प्रभावरूप परिपूर्ण
अखंड ज्ञान अने सुखना निधानने देखीने जेणे बीजी
(परभावनी) रीत छोडी दीधी छे, –आवी अवगाढ द्रढ प्रतीति
जेने थई छे तेने अमारी वंदना छे, –एम कवि दीपचंदजी कहे छे.