Atmadharma magazine - Ank 312
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: २ : आत्मधर्म : आसो : २४९प
आत्मा अने अनात्मानुं साचुं ज्ञान
(मोक्षमार्गमां पावरधा दिगंबर सन्तोए बतावेलो अपूर्व मार्ग)
सम्यग्द्रष्टिने राग नथी माटे बंधन नथी–एम कह्युं.
सम्यग्द्रष्टिने राग केम नथी? केमके ज्ञानस्वभावनो ज तेने
स्वीकार छे, ते ज्ञानना भावमां राग नथी; अने जे जीव
ज्ञानभावमां रागना अंशने पण भेळवे छे ते रागी जीव
सम्यग्द्रष्टि नथी. –ए वात अहीं आत्मा अने अनात्मानुं
भेदज्ञान करावीने आचार्यदेव समजावे छे.
• ज्ञानस्वभावथी भरेलुं स्वतत्त्व ते आत्मा छे.
• ज्ञान सिवायना बीजा रागादि भावो ते अज्ञानमय छे एटले अनात्मा छे.
राग ते ज्ञानमयभाव नथी माटे तेने अज्ञानमय कह्यो.
• साचो आत्मा कोने कहेवो? ने ते सिवाय अनात्मा कोने कहेवो? तेनुं यथार्थ
भेदज्ञान जीवे कदी कर्युं नथी.
•रागना अंशनी साथे पण जेने एकताबुद्धि छे, रागना एक कणने पण जे
ज्ञान साथे भेळसेळ करे छे ते अज्ञानी छे, केमके ते अनात्मभावने आत्मामां भेळवे छे.
जे ज्ञानमय भाव नथी तेने ते ज्ञानमय माने छे, तेथी तेने आत्मा अने अनात्मानुं
भेदज्ञान नथी.
• ज्ञानी तो आत्माने ज्ञानमय ज माने छे; ज्ञानमय एक भावमां रागादिनो
प्रवेश नथी. राग एटले अनात्मा तेना परिहार वडे ज्ञानमय आत्मानी सिद्धि थाय छे.
ए वात गाथा २०१–२०२ मां कहे छे–
अणुमात्र पण रागादिनो सद्भाव वर्ते जेहने,
ते सर्व आगमधर भले पण जाणतो नहि आत्मने. २०१.
नहि जाणतो ज्यां आत्मने ज, अनात्म पण नहि जाणतो,
ते केम होय सुद्रष्टि जे जीव–अजीवने नहि जाणतो. २०२.