Atmadharma magazine - Ank 312
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 5 of 48

background image
: आसो : २४९प आत्मधर्म : ३ :
• आमां ज्ञान अने रागना भेदज्ञाननी अपूर्व वात छे. ज्ञानीनी परिणति
केवी होय ने अज्ञानीनी परिणति केवी होय ते ओळखतां भेदज्ञान थाय छे.
• राग वखते ज्ञानीनी परिणति ज्ञानपणे वर्ते छे; ते ज्ञानस्वभावमय पोताने
अनुभवतो होवाथी तेने अणुमात्र पण राग नथी. राग तो अनात्मा छे, तेमां ज्ञानी
पोतापणे केम वर्ते?
• शुं ज्ञानीने राग नथी थतो?
ना; ज्ञानीने ज्ञानमां राग नथी थतो; रागने रागपणे ते जाणे छे पण पोताना
ज्ञानमां ते रागने भेळवता नथी. एटले राग ते तेना ज्ञाननुं ज्ञेय छे, पण ते ज्ञाननुं
कार्य नथी, ज्ञानीनुं ज्ञान रागथी जुदुं छे माटे ज्ञानीने राग नथी. अज्ञानी राग वखते
रागथी जुदा ज्ञानने जाणतो नथी, रागने ज पोताना स्वभाव तरीके अनुभवे छे,
एटले रागथी जुदो कोई आत्मा तेने देखातो नथी. आ रीते अज्ञानी ज रागमां
पोतापणे वर्ते छे; तेने आत्मा अने अनात्मानुं भेदज्ञान नथी.
• शास्त्रना ज्ञाननुं फळ तो ज्ञान अने रागनुं भेदज्ञान करीने ज्ञाननुं सेवन
करवुं ने रागनुं सेवन छोडवुं ते छे. एकला शास्त्रो गोखी जाय ने शब्दो धारी ल्ये पण
अंदर आवुं भेदज्ञान न करे, ज्ञाननो अनुभव न करे, तो तेने धर्म थाय नहीं;
शास्त्रभणतरनुं खरूं फळ तेने आवे नहि. गाथा ३८२ मां कहे छे के–
ज्ञाननुंं परद्रव्योथी अत्यंत भिन्नपणुं बताव्युं; ते जाणीने पण मूढ अज्ञानी जीव
उपशमभाव करतो नथी; भेदज्ञानरूप शिवबुद्धिने नहि पामेलो ते जीव परद्रव्यने ग्रहण
करवा चाहे छे. ज्ञानमां रागनुंग्रहण करवा मांगे छे–ते जीवने शिवबुद्धि नथी, भेदज्ञान
नथी, मोक्षमार्ग नथी.
• अरे, हुं ज्ञानस्वरूप आत्मा केवो छुं–एनो जेने अनुभव नथी, राग वगरनुं
स्वरूप केवुं छे तेनी जेने खबर नथी, राग अनात्मा होवा छतां तेने आत्मभावे जे
अनुभवे छे ते अज्ञानी छे, ज्ञानस्वरूपे आत्मानी सत्ता छे–तेनो तेने निर्णय नथी.
• रागनुं अस्तित्व छे, ते रागपणे छे पण ज्ञानमां रागनुं अस्तित्व नथी. –
आम धर्मी जीव पोताने रागथी अत्यंत अभावरूप एवी चैतन्यसत्तापणे अनुभवे छे;