Atmadharma magazine - Ank 313
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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वार्षिक लवाजम
वीर सं. २४९६
चार रूपिया कारतक
* वर्ष २७: अंक १ *
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आत्मानी प्रभुता ए ज उत्कृष्ट मंगळ
चैतन्यनुं मंगळ सुप्रभात
नवा वर्षना सुप्रभातमां सीमंधरनाथना दर्शन
कर्या बाद मंगल सन्देशमां गुरुदेवे चैतन्यनी
प्रभुताना परम महिमापूर्वक कह्युं के आत्मानी एक
प्रभुतामां बधुं समाई जाय छे. तेने याद करीने प्रगट
करवी ते मंगळ सुप्रभात छे. एटलुं ज सत्य छे,
एटलुं ज कल्याण छे ने एटलुं ज अनुभवनीय छे के
जेटलुं आ ज्ञानस्वरूप छे. ‘एनुं सवारमां खूब
घोलन चाल्युं हतुं’ एम कहीने एवा सत्य
आत्मस्वरूपनो अनुभव करवानी उत्तम प्रेरणा
गुरुदेवे आपी. अने कह्युं के आवो आत्मा ज
ध्रुवशरण छे. अहो, आ ज सत्य छे एटले आ
सिवाय बधुं असत्य छे, अभूतार्थ छे, अवस्तु छे;
भूतार्थ स्वभावमां तेनो अभाव छे; एवो जे
भूतार्थस्वभाव छे ते आत्मानी खरी प्रभुता छे. तेमां
सर्वज्ञता, पूर्ण आनंद–सुख बधा भावो समाई जाय
छे. बहारने देखवानी आंख बंध करीने अंदरमां
आवा भूतार्थ आत्माने देखवो ते अपूर्व मंगल
प्रभात छे.