: २ : कारतक : २४९६
झगमगता ज्ञान दीवडाथी शोभतुं
आत्मानुं सुप्रभात
(कारतक सुद एकम: नुतन वर्षनुं मंगल प्रवचन)
सवारमां जे आत्मानी प्रभुतानो परम महिमा घूंटायेलो, तेनुं फरी फरीने
रटण करतां प्रवचनमां पण गुरुदेवे कह्युं के–आत्माना भूतार्थ स्वभावनुं ज शरण
छे. ते स्वभावनी सन्मुख थतां द्रव्य साथे पर्यायनी एकता थई ने आनंदनो
अनुभव थयो, त्यां पर्यायबुद्धि छूटी गई. आनुं नाम सम्यग्दर्शन–सुप्रभात छे.
एक समयनी पर्याय छे ते रागथी जुदी पडीने ध्रुवस्वभावनुं शरण ल्ये छे एटले
तेमां अभेद थाय छे. संयोगनुं तो शरण नथी, रागादिभावो विभाव छे, चैतन्यथी
विरुद्ध छे, ते पण शरणरूप नथी, क्षणिकपर्याय एक समयनी, तेने लक्षमां लईने
शरण लेवा जाय तो विकल्पनी वृत्ति ऊठे छे, ते पण शरण थती नथी. अंतरना
स्वभावमां प्रभुता एवी छे के जेमां केवळज्ञान– आनंद आदि सर्वगुणनो अखंड
प्रताप छे, जे कोईथी तोडी न शकाय; आम सर्वगुणने धारण करनारी आत्मप्रभुता
छे तेनी सन्मुख थतां झगझगता ज्ञानदीवडा प्रगटे छे. आ झगझगता ज्ञानदीवडाथी
आत्मानुं सुप्रभात शोभे छे.
धर्मीने शरण छे धर्मीनुं. ‘धर्मी’ एवो जे अनंत गुणसंपन्न आत्मा, तेनुं धर्मीने
अवलंबन छे; तेने ते अनुभवे छे. ते आत्मा पोताना स्वभावथी भरेलो छे. प्रभुताथी
पूरो छे. ज्ञाननो पूंज छे. आवा आत्माना चैतन्यसमुद्रना तळीये जे पहोंच्यो ते धर्मी
जीव अधर्मरूप रागादि परभावोने केम ईच्छे? तेने केम आत्माना माने? ज्ञान–आनंद
स्वभावने पोतानो करीने जे अनुभवे, ते रागादिने पोताना करीने केम अनुभवे?
पोतानी प्रभुताने जेणे देखी, ते पोताने पामररूप केम माने? वाह! आत्मानी प्रभुता!
तेनो महिमा, तेनी द्रष्टि, तेनो अनुभव ते महा मंगळ छे, आनंदरूप छे. जीवने आत्मानुं
आवुं परम महिमावंत स्वरूप सांभळवानुं पण महान भाग्यथी कोईकवार मळे छे.
ज्ञानीए पोताना चिदानंद स्वभावने अनुभवमां लईने रागादि परभावोने
जुदा कर्या छे के ‘आ मारी वस्तुना घरनो भाव नहि.’ अहो, आ चैतन्यना
आनंदनो मार्ग! ते रागथी केम मळे? चैतन्य महाप्रभु द्रष्टिमां आव्यो त्यां धर्मीने
कृत–