Atmadharma magazine - Ank 313
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: कारतक : २४९६ : ४१ :
मुक्ति जावुं...मुक्ति
जावुं दोडे एक ज ध्येये
ज्ञानमार्गनो ध्रुव कांटो ने वैराग्यना हलेसां,
हम्–हम् करती दोडी जाये, श्रद्धानां बळ बांहे...
एवी अजब मारी नौका...तेमां बेसी०
कदी ऊछळे, कदी अद्रश्य थाये, छोने जळचर घेरे,
मेघ गर्जे के हीम वर्षे पण मारी नौका दोडे...
एवी अजब मारी नौका...तेमां बेसी०
कायर दुनिया डरती भारे ‘डुबी जशे आ हमणां!’
(पण) वीरमार्गनी द्रढता जेने भरे न पाछा पगलां...
एवी अजब मारी नौका...तेमां बेसी०
पाछुं वळीने जुए नहीं...ए दोडे एक ज ध्येये,
मारे मुक्ति जावुं–मुक्ति जावुं...रे’ वुं न वच्चे क्यांये...
एवी अजब मारी नौका...
तेमां बेसी में तो अफर प्रयाण आदर्युं.
(हरि)
***
*****
***

*
ववाणीयाथी एक जिज्ञासु लखे छे के–”आत्मधर्म आ जीवनी वहालामां वहाली
चीज, तेनां आववानी राह जोईने ज बेठा होईए...आप सहु परम भाग्यवान
छो के एक ज्ञानीपुरुषनी निश्रामां जीवन वीतावी रह्या छो. पू. श्री कानजीस्वामी
प्रति आ जीवने पिता जेवुं वहालप आव्या करे छे, तेओश्रीना आशीर्वाद ईच्छुं
छुं; तेओश्री यथार्थ मोक्षमार्ग नीरूपी रह्या छे.”