: ४२ : : कारतक : २४९६
अमे जिनवरना संतान (नवा सभ्योना नाम)
२४०४A जयश्रीबेन एन. जैन अमरापुर २४१८A विनोदकुमार जैन राधौगढ
२४०४B रंजनाबेन एन. जैन “ २४१८B कुसुमकुमारी जैन “
२४०४C मीनाक्षीबेन एन. जैन “ २४१९A अजयकुमार एस. जैन “
२४०४D किर्तीदाबेन एन. जैन “ २४१९B अनीलकुमार एस. जैन “
२४०४E मुकेशकुमार एन. जैन “ २४१९C चंद्राबाई एस. जैन “
२४०प रामसंगभाई डी. जैन वढवाण २४२०A विजयकुमारी बी. जैन “
२४०६ दशरथसिंहजी के. जैन “ २४२०B प्रेमकुमारी बी. जैन “
२४०७ हर्षाबेन एस. जैन “ २४२०C लक्ष्मीकुमारी बी. जैन “
२४०८ नरेन्द्रकुमार एम. जैन “ २४२१A उर्मीलाबेन जैन “
२४०९ केतनकुमार के. जैन “ २४२१B उषाबेन जैन “
२४१० कमलेशकुमार ए. जैन “ २४२१C संतोषकुमार जैन “
२४११ राजेशकुमार टी. जैन “ २४२२A सुरेन्द्रकुमार जैन “
२४१२ मीनाकुमारी टी. जैन राधौगढ २४२२B साधनाकुमारी जैन “
२४१३ कपुरीदेवी एफ. जैन “ २४२२C अविनाशकुमार जैन “
२४१४ राजकुमारी जी. जैन “ २४२२D मंजुकुमारी जैन “
२४१प रविकुमारी जैन “ २४२२E कल्पनाकुमारी जैन “
२४१६B मीनाकुमारी जैन “ २४२३ मुकेशभाई जैन वढवाण
२४१७A विजयकुमारी के. जैन “ २४२४ नयनाबेन जैन वढवाण
२४१७B प्रमोदकुमारी के. जैन “ २४२प शैलेशकुमार नथुभाई. जैन वीजापुर
२४१६A विनयकुमार जैन “
ज्यां सुधी–
जीवने ज्यांसुधी उपादान–निमित्तनी स्वतंत्रतानुं ज्ञान न थाय, ज्यां सुधी जड–
चेतननी भिन्नताने ते न ओळखे, अने जीव पोते ज्ञानस्वरूप छे एटले तेनुं ज्ञान कोई
बीजामांथी नथी आवतुं–आटली जैन सिद्धांतनी मूळ वात ज्यां सुधी न समजे, त्यां
सुधी ते जीवने आत्मज्ञाननी के साधुपणानी पात्रता होई शकती नथी.
आत्मधर्मना घणा पाठको तरफथी अभिनंदन–संदेश मळ्या छे;
संपादक पण सौ साधर्मीओने धर्मवात्सल्य सहित अभिनंदन पाठवे छे.