Atmadharma magazine - Ank 314
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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स्वयंसिद्ध आ विश्वनुं स्वरूप
अरिहंतदेवे जोयेलुं जे आ स्वयंसिद्ध विश्व, तेमां अनंत
चेतन अने जड पदार्थो छे; चेतन के जड कोई पदार्थ पोतानी
स्वजातिने कदी छोडतो नथी.
चेतन सदा चेतनपणे रहीने, अने जड सदा जडपणे रहीने,
पोतपोताना उत्पाद–व्यय–ध्रुवमां वर्ते छे.
नित्य एवा गुणरूप, अने अनित्य एवी पर्यायोरूप, ए
रीते पोताना गुण–पर्यायोरूप वस्तु पोते ज छे. गुणपणे कायम
रहीने ते पोते ज पोतानी पर्यायरूपे परिणमे छे.
भिन्न वस्तुना गुण–पर्यायो एकबीजामां कदी भळता नथी,
के एकबीजाने कदी करता नथी.
सर्वज्ञदेवे जोयेलुं आवुं वस्तुस्वरूप, वीतरागी संतोए
प्रसिद्ध करीने जगतने भेदज्ञान कराव्युं छे.
(विशेष माटे आ अंकमां आपेलां प्रवचनो वांचो.)
तंत्री: पुरुषोत्तमदास शिवलाल कामदार संपादक: ब्र. हरिलाल जैन
वीर सं. २४९६ मागशर (लवाजम: चार रूपिया) वर्ष २७. अंक २