Atmadharma magazine - Ank 314
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: २ : : मागशर : २४९६
ज्ञानीनी अद्भुत
ज्ञानचेतना
ज्ञानीनी ज्ञानचेतना ते अत्यंत सूक्ष्म छे अर्थात्
अतीन्द्रिय छे; ने शुभराग तो स्थूळ छे, ते स्थूळ भाव वडे
अंदरना सूक्ष्म भावो पकडी शकाता नथी. रागथी जुदा
पडेला एवा सूक्ष्म ज्ञानवडे ज ज्ञानीनी अद्भुत दशाने
ओळखी शकाय छे.
रागनी क्रियाओ वखते तेनाथी जुदी परिणमनारी ज्ञानीनी जे ज्ञानचेतना छे,
ते ज्ञानचेतनाने अज्ञानीओ ओळखता नथी, एटले ज्ञानीना खरा कार्यने ते ओळखता
नथी; तेमने तो राग ज देखाय छे. रागथी पार भावनी तेमने खबर नथी. पोते
रागमां तन्मय वर्तीने रागने करे छे एटले ‘ज्ञानी पण रागने करे छे’–एम तेने
प्रतिभासे छे; पण, ज्ञानी तो ज्ञानमय भावमां ज तन्मय वर्ते छे ने रागथी जुदा वर्ते
छे–एवी अद्भुत ज्ञानपरिणति ते अज्ञानीने देखाती नथी.
ज्ञानीना रागातीत चैतन्यभावने सूक्ष्म कह्या छे, ने रागादि भावोने स्थूळ कह्या
छे. अज्ञानी ते सूक्ष्म भावोने अनुभवतो नथी, ने रागादि स्थूळ भावोने ज
अनुभवतो थको तेने धर्म समजे छे. ज्ञान चेतना तो चोख्खी छे, ते चोखाना कण जेवी
छे, ने शुभराग तो उपरनां फोतरां जेवां छे. एकला फोतरांने ज देखे ने फोतरां ज भेगां
करीने खांडवा मांडे तो तेने कणनी प्राप्ति क्यांथी थाय? जेम जडनी अने रागनी क्रिया
ते फोतरां जेवी छे, ते फोतरांने ज जे आत्मानुं कार्य माने, अने अंदरना कसदार एवा
ज्ञानभावने न ओळखे तो तेने पोतामां भेदज्ञान थतुं नथी, ने बीजा ज्ञानीने पण ते
ओळखी शकतो नथी. ज्ञानीनो भाव एटले रागथी जुदो पडेलो चैतन्यभाव; रागथी
जुदो पडेलो राग वगरनो भाव. ते रागने केम करे?
रागथी जुदी एवी ज्ञानचेतना ते ज्ञानवडे ज ओळखाय छे, राग वडे
ओळखाती नथी. माटे कह्युं के ज्ञानीनी वात ज्ञानी ज जाणे; अज्ञानी तेने जाणी न शके.
प्रश्न:– तो अज्ञानीए शुं करवुं?
उत्तर:– अज्ञानीए अज्ञान छोडीने ज्ञानी थवुं. पोतामां रागथी भिन्नता