नथी; तेमने तो राग ज देखाय छे. रागथी पार भावनी तेमने खबर नथी. पोते
रागमां तन्मय वर्तीने रागने करे छे एटले ‘ज्ञानी पण रागने करे छे’–एम तेने
प्रतिभासे छे; पण, ज्ञानी तो ज्ञानमय भावमां ज तन्मय वर्ते छे ने रागथी जुदा वर्ते
छे–एवी अद्भुत ज्ञानपरिणति ते अज्ञानीने देखाती नथी.
अनुभवतो थको तेने धर्म समजे छे. ज्ञान चेतना तो चोख्खी छे, ते चोखाना कण जेवी
छे, ने शुभराग तो उपरनां फोतरां जेवां छे. एकला फोतरांने ज देखे ने फोतरां ज भेगां
करीने खांडवा मांडे तो तेने कणनी प्राप्ति क्यांथी थाय? जेम जडनी अने रागनी क्रिया
ते फोतरां जेवी छे, ते फोतरांने ज जे आत्मानुं कार्य माने, अने अंदरना कसदार एवा
ज्ञानभावने न ओळखे तो तेने पोतामां भेदज्ञान थतुं नथी, ने बीजा ज्ञानीने पण ते
ओळखी शकतो नथी. ज्ञानीनो भाव एटले रागथी जुदो पडेलो चैतन्यभाव; रागथी
जुदो पडेलो राग वगरनो भाव. ते रागने केम करे?
उत्तर:– अज्ञानीए अज्ञान छोडीने ज्ञानी थवुं. पोतामां रागथी भिन्नता