Atmadharma magazine - Ank 315
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: १६ : : पोष : २४९६
वैराग्य समाचार...
–नव काळ मूके कोईने...
मनुष्यनुं जीवन लांबु हो के टूंकु–पण एवुं उत्तम जीवन जीववुं के जेथी आत्मानुं
हित थाय. आयुष्य कांई आत्मानुं नथी, अनादि अनंत आत्माने आयुष्यनी मर्यादा
शी? जीव सदाय जीवे तो छे,–पण ए जीवन आनंदमय छे के दुःखमय? ते जोवानुं छे.
जगतथी भिन्न एवा निजात्माना ज्ञानबळे आनंदमय जीवन जीवाय छे; एवा ज्ञान
वगरनुं दुःखमय जीवन, तेने ज्ञानीओ खरूं जीवन नथी कहेता पण भावमरण कहे छे.
बाकी मनुष्यशरीरमां (के चार गतिमांथी कोईपण गतिमां) रहेवानो काळ तो मर्यादित
ज होय, संसारमां कोई गति स्थिर नथी; स्थिर तो सिद्धगति छे के जे ध्रुवस्वभावने
अवलंबनारी छे. आवा लक्षनी पुष्टि थाय, ने संसारनी क्षणभंगुरता जीवने लक्षगत
रह्या करे एटले वैराग्यपूर्वक आत्महितमां ते उद्यमी रहे, ते हेतुथी आत्मधर्ममां
वैराग्यसमाचारो अपाय छे.
मागशर वद बीजना रोज लींबडीवाळा भाईश्री मनसुखलाल जादवजी
कोठारीनो एकनो एक पुत्र शिरिषकुमार १९ वर्षनी युवानवये भावनगर मुकामे
स्वर्गवास पामी गयो. नाकना हाडकानी सहेज तकलीफनुं ओपरेशन कराववा
ईस्पितालमां गयेला, त्यारे कलोरोफोर्म सुंघाडया बाद तरत ज कंईक थई जतां तेमनो
स्वर्गवास थई गयो. छ बहेनो वच्चे ते एक ज भाई हतो, ने कोलेजमां कोमर्सना
बीजा वर्षमां अभ्यास करतो हतो. आवा युवाननुं आ प्रकारे एकाएक अवसान थतां
तेमना कुटुंबने खुब आघात थाय ते सहज छे, परंतु वैराग्य अने तत्त्वज्ञानना संस्कार
ए ज समाधाननो उपाय छे. आ संसारमां आवा प्रसंगो न बने तो बीजे क््यां बने?
पण आवा सर्व प्रसंगोमां जीवने शांति आपवा माटे मात्र “समाधान” ए ज परम
औषध छे.
हजी आ वैराग्यजनक प्रसंगनी चर्चा घर घर चालती हती त्यां तो एकाएक
एवा ज बीजा समाचार आवी पड्या–
भावनगर मुकामे भाईश्री शांतिलाल खीमचंद मागशर वद छठ्ठ ता. ३०–१२–
६९ना रोज मधराते एकाएक हार्टफेलथी स्वर्गवास पामी गया. छठ्ठनी रातना