Atmadharma magazine - Ank 315
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: पोष : २४९६ : १प :
बचाववानुं के शुभराग करवानुं काम मारा चैतन्यमां नथी–एम शुद्ध
चैतन्यभावरूपे ज आत्माने जाणवो–अनुभववो ते अहिंसा धर्म छे, तेमां
चैतन्यजीवननी रक्षा छे.
हिंसानो भाव के दयानो भाव चैतन्यमांथी नथी नीकळतो; हिंसानो पापभाव के
दयानो पुण्यभाव, ते बंने भावो चैतन्यभावथी विरुद्ध जातना छे, ए विरुद्धभावोनुं
काम चैतन्यमां मानवुं ते चैतन्यनी हिंसा छे. अने ते विरुद्धभावोथी जुदो राखीने
आत्माने चैतन्यपणे टकावी राखवो ते अहिंसा छे.
परम अहिंसा धर्मने माटे आ जैनसिद्धांत छे के–
शुभ के अशुभ कोईपण रागनुं कर्तृत्व ते हिंसा छे;
वीतरागी–चेतनभावे आत्मानुं रहेवुं ते अहिंसा छे.
आवी अहिंसा ते मोक्षनुं कारण छे, तेथी ते परम धर्म छे.
अहिंसा धर्मनो जय हो.
मोक्षने साधवामां मदद करे ते साचो मित्र
प्रश्न:– पुण्यना कारणरूप शुभराग ते आत्मानो साचो
मित्र छे के दुश्मन?
उत्तर:– ते शुभराग आत्माने मोक्ष पामतो अटकावे छे;
तेथी जे जीव मोक्ष साधवा मांगे छे तेने तो ते राग शत्रुसमान
छे; तेनो नाश करीने ज मोक्ष पमाय छे.
आत्माने पोतानुं मोक्षकार्य साधतां जे रोके तेने मित्र
केम कहेवाय? आत्माना साचा मित्र तो सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्र
ज छे–के जे मोक्षकार्य साधवामां मदद करे छे.