Atmadharma magazine - Ank 315
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 24 of 45

background image
: पोष : २४९६ : २१ :
स्वाश्रये मोक्ष...
पराश्रये बंधन
परवस्तु जीवने बंधनुं कारण नथी तेम मोक्षनुं पण
कारण नथी; आम जाणीने पर साथेनी कर्तृत्वबुद्धि छोडवी,
अने परथी भिन्न पोताना ज्ञानस्वरूपनो आश्रय करवो–ते
मोक्षनुं कारण छे.
*****
* बाह्य वस्तुओ जीवने बंध–मोक्षनुं कारण नथी–ए सिद्धांत समजावीने
आचार्यदेव भेदज्ञान करावे छे; अने स्वाश्रये मोक्ष थवानुं समजावे छे.
* एक आत्मा बीजा पदार्थोथी भिन्न छे; भिन्न होवा छतां तेमनां कार्योने हुं करुं,
अथवा तेमना कार्योथी मने बंध–मोक्ष थाय–एम जीव अज्ञानथी माने छे; ने ए
मिथ्यामान्यता ज अज्ञानमय होवाथी बंधनुं कारण छे. स्व–परनुं भेदज्ञान
करीने ए मिथ्यामान्यता छोडवी ने ज्ञानस्वरूप आत्मानुं ज्ञानभावपणे ज रहेवुं
ते मोक्षनुं कारण छे.
* बाह्यवस्तु निमित्त भले हो, पण ते वस्तुनुं कार्य तेनामां ज छे, तेना पोताथी
बहार तेनुं कार्यक्षेत्र नथी; जीवनी अवस्थामां तेनुं कांई ज कार्य नथी.
* जीवने बंधनुं कारण जीवमां होय, बीजामां न होय; ए ज रीते जीवने मोक्षनुं
कारण जीवमां होय, जीवनी बहार न होय.
* प्रश्न:– परद्रव्य जो बंधनुं कारण नथी, तो परद्रव्यरूप बाह्यवस्तु छोडवानो
उपदेश केम आपवामां आवे छे?
* उत्तर:– परद्रव्यना आश्रये थतो जीवनो भाव ते बंधनुं कारण छे, तेथी ते
पराश्रितभावने छोडाववा माटे परद्रव्यने छोडवानुं कह्युं छे. पण परद्रव्य छोडवुं
एटले खरेखर परद्रव्यनो आश्रय छोडवो, ने स्वद्रव्यनो आश्रय करवो–एम तेनुं
तात्पर्य छे. परद्रव्यना आश्रये बंधन छे ने स्वद्रव्यना आश्रये मुक्ति छे–ए
महान सिद्धांत छे.