Atmadharma magazine - Ank 315
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: २२ : : पोष : २४९६
* ए वात मोक्षप्राभृतमां कुंदकुंदस्वामी ए कही छे के–
परदव्वादो दुग्गइ सद्दव्वादो हु सुग्गई होई।
इय णाऊण सदव्वे कुणह रई विरय इयरम्मि।।१६।।
स्वद्रव्य–रत पामे सुगति, परद्रव्य–रत जीव दुर्गति,
आ जाणीने बन स्व–रत जीव तुं था विरत परद्रव्यथी.

स्वद्रव्यमां रत जीवने सुगति थाय छे अने परद्रव्यमां रत जीवने दुर्गति
थाय छे;–आम जाणीने हे भव्य जीवो! तमे स्वद्रव्यमां रति करो अने परद्रव्योथी
विरति करो.
सुगति एटले मोक्ष अने दुर्गति एटले संसारनी चारे गति; अथवा
सुगति एटले सम्यक् परिणति, शुद्ध परिणमन, ते मोक्षनुं कारण छे; अने दुर्गति
एटले भूंडी परिणति, अशुद्ध परिणमन, ते संसारनुं कारण छे. माटे
शुद्धज्ञानमय स्वद्रव्यनो आश्रय करवो, ने परद्रव्यनो आश्रय छोडवो,–ए
मोक्षनो मार्ग छे, ए जैनसिद्धांतनो सार छे.
* जीव जे कांई अज्ञानादि बंधभाव करे तेमां परद्रव्यनो ज आश्रय होय;
स्वद्रव्यना आश्रये कदी बंधभाव थाय नहीं. भूयत्थमस्सिदो खलु सम्माइट्ठी
हवइ जीवो’ भूतार्थ स्वभावना आश्रये सम्यग्दर्शन छे, ए ज रीते सम्यग्ज्ञान,
सम्यक्चारित्र आदि वीतरागभाव पोताना स्वभावना आश्रये छे. मोक्षभावमां
स्वद्रव्यनो आश्रय छे, ने बंधभावमां परद्रव्यनो आश्रय छे.
* शुभ के अशुभ बंधभावमां परनो आश्रय छे–ते वात अहीं द्रष्टांतथी समजावे
छे–हुं आने मारुं–एवो अशुभ अध्यवसाय, अथवा हुं आने बचावुं–एवो शुभ
अध्यवसाय–ते क््यारे थाय?–के सामे तेवा जीवनुं अस्तित्व होय, ने जीव तेनो
आश्रय करे त्यारे एवी बुद्धि थाय के हुं आ जीवने मारुं अथवा हुं आने बचावुं.
सामे कोई जीवनुं अस्तित्व ज न होय, तो तेना आश्रय वगर एवो मारवानो
के जीवाडवानो अभिप्राय क््यांथी थाय? वंध्यसुतने हुं मारुं, के आकाश फूलने हुं
चूंटुं एवो भाव कोईने थतो नथी केमके सामे तेवी वस्तुनुं अस्तित्व ज नथी.