Atmadharma magazine - Ank 315
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 26 of 45

background image
: पोष : २४९६ : २३ :
* सामी वस्तुनुं अस्तित्व तो तेनामां छे, ते कांई बंधनुं कारण नथी, पण जीव
ज्यारे बंधभाव करे त्यारे ते परवस्तुना ज आश्रये करे छे. माटे परद्रव्यनो
आश्रय छोडवानो भगवाने उपदेश आप्यो छे.
* परवस्तु ज बंधनुं कारण नथी पण बंधन वखते जीवने परनो ज आश्रय होय
छे. जो परवस्तु ज बंधनुं कारण थती होय तो, जगतमां सदाय तेनुं अस्तित्व छे
एटले सदाय बंधन थया ज करे, मोक्ष कदी थाय ज नहीं.–पण एम नथी, केमके
बाह्यवस्तु पोते बंधनुं कारण नथी; ते बाह्यवस्तु बंधभावमां निमित्त होवा
छतां ते पोते बंधनुं कारण थती नथी. स्वनो आश्रय छोडीने ते परद्रव्यना
आश्रये अशुद्धभावे परिणमे तो ज जीवने बंधन थाय छे. बंधभाव जीव करे
अने परद्रव्यनो आश्रय न होय–एम बने नहीं, केमके स्वद्रव्यना आश्रये कदी
बंधभाव थाय नहीं; बंधभाव परना ज आश्रये थाय.
* ‘स्वाश्रये मुक्ति, ने पराश्रये बंधन’–आ महान सिद्धांत छे.
भगवान जिनेश्वरदेवोए तो स्वद्रव्यना ज आश्रये मोक्षमार्ग उपास्यो
छे, ने तेवो ज स्वाश्रित–मोक्षमार्ग उपदेश्यो छे; परद्रव्यना आश्रये मोक्ष थवानुं
भगवाने कह्युं नथी. भगवाने देहादि परद्रव्यनुं ममत्व छोडीने, ज्ञानमय
स्वद्रव्यना आश्रये मोक्षने साध्यो छे. शुद्ध आत्माना आश्रये थयेला सम्यग्दर्शन–
ज्ञान–चारित्र ते ज मोक्षमार्ग छे केमके ते स्वद्रव्य छे. द्रव्यलिंग, शरीरनी
क्रियाओ वगेरे परद्रव्याश्रित छे, शुभ विकल्पो परद्रव्याश्रित छे, तेओ जीवने
मोक्षनुं कारण नथी. (जुओ गाथा ४१०)
* आत्माना ज अशुद्ध के शुद्ध परिणामो आत्माने बंध–मोक्षनुं कारण थाय;
परद्रव्यनां परिणाम जीवने बंध–मोक्षनुं कारण थाय नहीं. जेमके–
कोई मुनिराज ईर्यासमिति पूर्वक गमन करता होय, हिंसानो के प्रमादनो
भाव न होय, ने अचानक ऊडीने पग नीचे कोई जीवडुं आवीने पडे ने आयुष
पूरुं थवाथी मरी जाय,–त्यां बाह्यमां जीवडुं मरवा छतां, हिंसाभावना अभावने
लीधे ते मुनिराजने बंधन थतुं नथी. माटे ए सिद्धांत नक्की थयो के बाह्यवस्तु
बंधनुं कारण नथी, जीवनो हिंसादिभाव ज बंधनुं कारण छे.