Atmadharma magazine - Ank 315
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: ३६ : : पोष : २४९६
* साचा–खोटानी परीक्षा *
* * * * *
गतांकमां १० वाक्यो लखीने, ते साचा छे के खोटा तेनी परीक्षा
करवानुं तमने सोप्युं हतुं. दशमांथी चार वाक्यो (बीजुं, त्रीजुं, सातमुं
ने दसमुं) साचा छे; बाकीनां भूलवाळां छे. तेनो खुलासो नीचे मुजब छे–
(१) एक सम्यग्द्रष्टि जीव मरीने ज्योतिषीदेवोनो ईन्द्र थयो.–ए वात साची
नथी, केमके सम्यग्द्रष्टि जीव कदी ज्योतिषीदेवोमां ऊपजता नथी, वैमानिकदेवमां ज
ऊपजे छे. ज्योतिषी देवोमां ऊपजे ते वखते जीव मिथ्याद्रष्टि ज होय छे; त्यारपछी कोई
जीवो आत्मज्ञान करीने सम्यग्द्रष्टि थाय ते जुदी वात छे.
(२) एक सम्यग्द्रष्टि जीव मरीने बीजी नरकमां गयो–ए वात साची नथी;
सम्यग्दर्शन सहित कोई जीव कदाचित (पूर्वबद्धआयुने कारणे) नरकमां जाय तो ते
पहेली नरकमां ज जाय, बीजी नरकमां जाय नहीं ए नियम छे. बीजी नरकोमां गया
पछी त्यां सम्यग्दर्शन प्रगट करी शके खरो.
(३) एक सम्यग्द्रष्टि जीव मरीने पहेली नरके गयो. (जेने अज्ञानदशामां
नरकनुं आयुष्य बंधाई गयुं होय ने पछी क्षायिक सम्यग्दर्शन पाम्यो होय तेवा जीवने
आ वात लागु पडे छे.)
(४) एक जीवे तीर्थंकरप्रकृति बांधी ने पछी त्रीजी नरके गयो,–ए वात
संभवे छे. नरकमां त्रण नरक सुधी तीर्थंकरप्रकृतिनी सत्ता होई शके छे. कोई जीवे
मिथ्यात्वदशामां नरकगतिनुं आयु बांधी लीधुं, पछी सम्यग्दर्शन पाम्यो ने
प्रभुचरणमां तीर्थंकरप्रकृति पण बांधी; पछी आयुष्यना अंतिम मुहूर्तमां फरी
मिथ्यात्वदशा पामीने ते जीव (तीर्थंकरप्रकृति सहित) त्रीजी नरकमां जाय; अने त्यां
गया पछी अंतर्मुहूर्तमां ते जीव पाछो सम्यग्दर्शन पामी जाय छे. (आवा जीवो
क्षायिक सम्यग्द्रष्टि नथी होता; क्षायिक सम्यग्दर्शननुं अस्तित्व पहेली नरक सुधी ज
संभवे छे, तेथी नीचे नहीं.)
(प) एक जीवे तीर्थंकरप्रकृति बांधी ने पछी चोथी नरके गयो...ए वात संभवी
शके नहीं. (उपरनो खुलासो वांचवाथी ते समजी शकाशे.)