Atmadharma magazine - Ank 315
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: पोष : २४९६ : ३७ :
(६) एक जीव छठ्ठी नरकेथी नीकळी मनुष्य थयो ने पछी मुनि थयो.–ए साचुं
नथी. छठ्ठी नरकेथी नीकळेलो जीव मनुष्य थई शके पण ते भवमां तेने मुनिदशा आवी
शके नहीं. आ संबंधमां नीचे मुजब नियमो छे–
* सातमी नरकेथी नीकळेलो जीव मिथ्यात्वसहित ज त्यांथी नीकळे अने तिर्यंच
ज थाय, मनुष्य न थाय.
* छठ्ठी नरकेथी नीकळेलो जीव सम्यक्त्वसहित पण नीकळी शके, ने मनुष्य पण
थई शके, परंतु व्रतधारी थई शके नहीं.
* पांचमी नरकेथी नीकळेलो जीव व्रतधारी थई शके परंतु केवळज्ञान पामी न
शके
* चोथी नरकेथी नीकळेलो जीव केवळज्ञानी थई शके पण तीर्थंकर न थई शके.
* त्रीजी–बीजी के पहेली नरकेथी नीकळेलो जीव तीर्थंकर पण थई शके. (परंतु
नरकमांथी आवेलो जीव चक्रवर्ती के बळदेव–वासुदेव थाय नहीं.)
(आ उपरांत चार गतिमां गमनागमन संबंधमां जाणवा जेवा बीजा पण
अनेक नियमो छे, जे कोई वार आत्मधर्ममां आपीशुं.)
(७) एक जीव चोथी नरकेथी नीकळी मनुष्य थई, केवळज्ञान पामी मोक्षे गयो,
–ए वात संभवी शके छे. (उपरना नियमो वांचो.)
(८) एक जीव आत्माने ओळखी मुनि थयो ने क्षपकश्रेणी मांडी स्वर्गे गयो,–
एम बने नहीं, क्षपकश्रेणी मांडनार जीव ते भवे मोक्ष ज पामे, ते कदी स्वर्गमां जाय
नहीं.
(९) एक जीव त्रीजा गुणस्थाने मरीने देवलोकमां देव थयो.–(ए वात साची
नथी, केमके त्रीजा गुणस्थाने कोई जीवनुं मरण थतुं नथी.)
(१०) भरतक्षेत्रनो कोई जीव सीमंधरप्रभु पासे गयो ने क्षायिक सम्यक्त्व
पाम्यो,–ए वात संभवी शके छे; परंतु पंचमकाळमां जन्मेला जीवने माटे ते संभवतुं
नथी केमके ते जीवमां क्षायिक सम्यक्त्वनी योग्यता नथी.