पण ते पोतानी शक्तिने भूलीने, भ्रमणाने लीधे संसारनी जेलमां–जंजीरमां
फसायो छे... तेमांथी ते केम छूटे?–के “हुं कोण छुं ने मारुं वास्तविक स्वरूप शुं
छे”–ते जो बराबर ओळखे तो भ्रमणा छूटे ने निर्दोष सुख तथा निर्दोष आनंद
प्रगटे.
एनी मने दया आवे छे! दिव्य शक्तिवाळा चैतन्यना निर्दोष सुखने भूलीने
परवस्तुमां सुख मानतां ते मिथ्या मान्यतामां आत्मा मुंझाय छे; परमां सुख कल्पे
छे पण तेने सुख मळतुं तो नथी–तेथी ते पराश्रितभावमां मुंझाय छे, ने ते देखीने
ज्ञानीओने दया आवे छे, के अरे! चैतन्यभगवान आत्मा पोते पोताने भूलीने
परमां मुर्छाई गयो!–ए मुंझारो एटले के परमां सुखबुद्धिरूप मुर्छा त्यागवा माटे
आ सिद्धांत छे के जेनी पाछळ दुःख होय ते भावमां सुख नथी...सम्यग्दर्शनादि
धर्मना भावोमां वर्तमान पण सुख ने तेना फळमां पण सुख; रागादि विकारी
भावोमां वर्तमान पण दुःख ने पछी तेना फळमां पण संसारना जन्म–मरणरूप
दुःख,–माटे तेमां सुख नथी. आम समजी ते रागादि विभावोथी भिन्न पोतानुं
चिदानंद स्वरूप लक्षमां लई, विवेकपूर्वक शांतभावे तेनुं चिंतन करवुं. एम
करवाथी मुंझवण मटीने निर्दोष आत्मसुख प्रगटे छे.