Atmadharma magazine - Ank 315
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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फोन नं. : ३४ “आत्मधर्म” Regd. No. G. 182
भारतमां ज्यारे बुद्ध अने ईसुना जन्मदिवसो जाहेर रजा तरीके स्वीकाराय छे,
त्यारे भारतना भगवान महावीरनो जन्मदिवस जाहेर रजा तरीके हजी सुधी नथी
स्वीकारायो–तेनुं एक कारण ए छे के, जैनोनी करोड जेटली वस्ती होवा छतां
भारतसरकारना वस्तीपत्रकमां मात्र सोळ लाख जेटला ज जैनो नोंधाय छे. सरकारी
दफतरमां जो पूरती संख्यामां जैनोनी वस्ती नोंधाय तो आपणे केटलाक सामाजिक
लाभो मेळवी शकीए. हवे आपणो जैनसमाज आ माटे जागे, ने मार्च मासमां वसती
गणतरी वखते (दसमा खानामां) सौ पोताने जैन तरीके ज लखावे–ए जरूरनुं छे.
आप जैनोना गमे ते फीरकामां हो–चाहे दिगंबर हो या श्वेतांबर, देरावासी हो या
स्थानकवासी,–पण वस्तीपत्रकमां मात्र “जैन” ज लखाववुं. जेम भारतमां केटलीय
नात–जातना लोको वसता होवा छतां, परदेशी आक्रमण सामे सौ ‘भारतीय’ तरीके
एक थईने ऊभा रहीए छीए, तेम सामाजिक क्षेत्रमां आपणे सौ जैनो एक थईने
ऊभा रहीए, अने जैनशासनना पवित्र झंडाने वधुने वधु ऊंचो फरकावीए.
अने, वीरप्रभुना निर्वाणनी अढी हजारमी जयंतिना महोत्सव माटे पण सौ
हळीमळीने तैयार थईए. ए पवित्र अवसर आवे त्यां सुधीमां परस्पर एवा संप
अने स्नेहनुं वातावरण सर्जीए के जैनो–जैनो वच्चेनो एकपण केस भारतनी कोई पण
कोर्टमां चालु रह्यो न होय; ने तेमां समाजनो एक पैसो पण खरचातो न होय; आपणी
सर्व शक्ति मात्र जैन समाजनी अने जैनधर्मनी उन्नतिमां ज वपराय.
जागो रे जैनो जागो... जिनवरनां सन्तान जागो...
रत्नत्रय प्रगटावी तमे वीरमार्गे लागो...
जैनं जयतु शासनम्
श्री दिगंबर जैन स्वाध्यायमंदिर ट्रस्ट वती प्रकाशक अने
मुद्रक: मगनलाल जैन अजित मुद्रणालय: सोनगढ (सौराष्ट्र) प्रत: २७००