सम्यग्दर्शन थाय छे.
व्यवहारनय अनुसरवा जेवो नथी; ए ज रीते सम्यग्ज्ञान माटे, सम्यक्चारित्र माटे
पण व्यवहारनय अनुसरवा जेवो नथी; शुद्ध आत्मानो ज आश्रय करवा जेवो छे
केमके तेना ज आश्रये सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र थाय छे. मोक्षमार्ग शुद्ध आत्माना
आश्रये थाय छे. माटे शुद्ध आत्मानुं स्वरूप देखाडनारो शुद्धनय ज भूतार्थ छे. अने
व्यवहारनय बधोय अभूतार्थ छे.
व्यवहारनो विकल्प हो,–ते कोईना आश्रये आत्मानुं सम्यग्दर्शन थतुं नथी; एकरूप जे
भूतार्थ शुद्धस्वभाव, तेना ज आश्रये सम्यग्दर्शन थाय छे.
केमके शुद्धनयनी पर्याय अंतरमां अभेद थाय छे. ‘ज्ञान ते आत्मा’ एवा
गुणभेदना सूक्ष्म विकल्पो वडे पण आत्मा पकडाय नहीं, तो पछी बीजा अशुद्धताना
स्थूळ विकल्पनी तो वात ज शी? व्यवहारना जेटला प्रकारो छे ते बधोय व्यवहार
आश्रय करवा जेवो नथी; अने शुद्धनिश्चय के जे एक प्रकारनो ज छे, ते ज एक
आश्रय करवा जेवो छे. ते एक स्वभावने देखनारी अभेदद्रष्टिमां कोई भेदो देखाता
नथी, एटले विकल्पोनुं उत्थान तेमां थतुं नथी; अभेदना अनुभवमां अतीन्द्रिय
आनंद अने निर्विकल्प सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र ए बधुं समाय छे; ते ज
मोक्षमार्ग छे. व्यवहारना आश्रये मोक्षमार्ग नथी. शुद्धनय भूतार्थ छे, अने तेना ज
आश्रये धर्मी जीवो मोक्षनी प्राप्ति करे छे.