Atmadharma magazine - Ank 315
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: पोष : २४९६ : ३ :
एक कोर शुद्ध आत्मा एकरूप, ते एक ज भूतार्थ;
एनी सामे व्यवहारना अनेक प्रकारो, ते बधाय अभूतार्थ.
पर्यायमां व्यवहार छे खरो, ते सर्वथा नास्तिरूप नथी; पण ते व्यवहारना
आश्रये आत्मानो अनुभव करवा जाय तो अशुद्धतानो अनुभव थाय छे अने
सम्यग्दर्शनादि थतां नथी; एटले सम्यग्दर्शनने माटे ते व्यवहारनय अभूतार्थ छे. शुद्ध
आत्मानो निर्णय कोण करे छे? ते निर्णय तो शुद्धस्वभाव तरफ झुकेली पर्याय ज करे छे.
पण ते पर्यायनो भेद पाडीने जोतां शुद्ध आत्मा अनुभवमां नथी आवतो; माटे
व्यवहारने अभूतार्थ कह्यो छे. निजभगवान पूर्ण आनंदथी भरेलो एकरूप छे–तेना
आश्रये सम्यग्दर्शनादि थाय छे. माटे कहे छे के–
लाख बातकी बात यहै निश्चय उर लावो,
तोड सकल जगदंद फंद निज आतम ध्यावो.
अहो, आ क्षणभंगुर जीवन! क्षणमां आयुष्य पूरुं करीने जीवो बीजे चाल्या
जाय छे, तेमां आवो सच्चिदानंद आत्मा लक्षगत करवा जेवो छे; ए ज जन्म–मरणने
टाळवानी, ने मोक्षने पामवानी रीत छे. अरूपी चैतन्य आत्माने आवा शरीर धारण
करवा पडे ए तो शरम छे. आत्मा तो अशरीर छे, तेने आवा जन्म–मरण शा? तेथी
कहे छे–
ध्यान वडे अभ्यंतर देखे जे अशरीर,
शरमजनक जन्मो टळे पीए न जननी क्षीर.
संयोगना लक्षे, अशुद्धताना लक्षे के भेदना लक्षे तो जीवने दुःख उत्पन्न थाय छे,
ने परमानंदरूप सुख तो पोताना शुद्धआत्माना लक्षे ज उत्पन्न थाय छे. माटे आचार्यदेव
कहे छे के हे जीवो! तमे तमारा भूतार्थ स्वभावने जाणीने तेनो ज आश्रय करो. ते ज
कल्याणनो मार्ग छे. ए सिवाय बीजुं बधुं असत्य छे.
पाणीनुं द्रष्टांत आपीने आत्मानुं शुद्धस्वरूप समजावे छे;–जेम पाणीनो निर्मळ
स्वभाव छे, कादव तेनो स्वभाव नथी; तेम आत्मा ज्ञायकभावस्वरूप एक शुद्ध वस्तु छे
ते भूतार्थ छे, ने संयोगीभावो के भेदना विकल्पो ते एनुं स्वरूप नथी. त्यां, जेम स्वच्छ
पाणी अने मलिन कादव, ए बंनेनो भेद नहि ओळखनारा घणा जीवो पाणीने मेलुं
समजीने तेने