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अडोल...धीर...गंभीर ज्ञान
ज्ञानचेतनाना गंभीर महिमापूर्वक चर्चामां गुरुदेवे कह्युं
के जेने संसारनो अंत आववानी तैयारी होय एवा मुमुक्षु
जीवने माटे आ अध्यात्मविषय छे.
जेने चैतन्यनी रुचि थई, तेनो रंग लाग्यो ने तेने
साधवा नीकळ्यो तेने, जगतनी गमे तेवी हलचल पोताना
मार्गथी डगावी शकती नथी, भगवान आत्मानो चेतकस्वभाव
कोईथी हलाव्यो हले नहीं. कोईथी घेराय नहीं; एवा स्वभावने
साधवा नीकळ्यो ते कोईथी हलाव्यो हले नहि. कोईथी घेराय
नहि. चैतन्यना झगझगता अबाधित ‘तेज–प्रकाश’ एने
खील्यां.
तेनी चैतन्यमां गंभीरता छे...धीरता छे; तेमां राग
तरफनो उत्साह नथी; परभावना उछाळा तेनामांथी शमी गया
छे, एनी चाल धारावाही छे, आनंद साथे एकरूप परिणति
करती ते चेतना धीरगंभीरपणे निजस्वभाव तरफ चाली जाय
छे; बीजे क््यांय ते अटकती नथी.
अहा, आवी चेतना...ते मोक्षने साधनारी छे. ते छूटी
ज छे कोईथी बंधायेली नथी. केवळज्ञान साथे ते केलि करे छे.
तंत्री: पुरुषोत्तमदास शिवलाल कामदार संपादक: ब्र. हरिलाल जैन
वीर सं. २४९६ महा (लवाजम: चार रूपिया) वर्ष २७: अंक ४