Atmadharma magazine - Ank 316
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: महा : २४९६ : ३३ :
शुद्धात्माने भावे छे’–आ भावना ते शुद्धपरिणमनरूप छे. अने अप्राप्तने प्राप्त करवानी
ईच्छारूप जे भावना छे ते राग छे.
अंतरीक्षमां जवुं सहेलुं छे, अंतरमां जवुं अघरुं.
अंतरमां जवा माटेनुं विज्ञान जेवुं भारत पासे छे तेवुं बीजा पासे नथी.
मेरूपर्वत एकलाख जोजन एटले के चालीस करोड माईल ऊंचो छे.
जैनसिद्धांत अनुसार मनुष्योनुं गमन त्यांसुधी थई शके छे...चंद्रलोक तो मात्र ८००
योजन एटले ३२ लाख माईल जेटलो ज ऊंचो छे. एटले त्यांसुधी मनुष्योनुं गमन थई
शके ए कोई आश्चर्यनी वात नथी, पण चंद्रलोक ए देवलोक छे, मनुष्यो त्यां रही शके नहि.
असंख्य जीवो मरीने चंद्रलोकमां ऊपजे छे; परंतु चंद्रलोकमां एवा ज जीवो
ऊपजे छे के जेमने आत्मानुं ज्ञान होतुं नथी. (त्यां गया पछी कोई जीवो आत्मानुं
ज्ञान करे ते जुदी वात छे, पण त्यां ऊपजती वखते तो आत्मज्ञान होतुं नथी.)
सुशिक्षित युवान वर्गमां पण ‘आत्मधर्म’ माटे केटलो रस छे ते श्री
बटुकभाई खंडेरीआना कोईम्बतूर (मद्रास) थी लखेला पत्र उपरथी ख्यालमां आवशे;
तेओ लखे छे के–अहीं जेमने त्यां ‘आत्मधर्म’ आवे छे तेओ मारा मित्र थई गया छे,
अने जे दिवसे आत्मधर्म आवे के ते ज दिवसे मने आपी जाय छे केमके मने तेना विना
जींदगीमां जरापण चेन पडतुं नथी. गुरुदेवे बतावेलो एक ज मार्ग छे के जेम बने तेम
वहेलुं आत्माने ओळखीने तेनी भावना करीने मुक्तिना मार्गने साधवो. हुं गमे त्यां
प्रवासमां होउं तोपण जिनवाणीनी स्तुति अने स्वाध्याय चालु ज राखुं छुं.
एक सुंदर वस्तु शोधी काढो
एक अत्यंत सुंदर वस्तु
जेना पग पाताळने अडे–ने माथुं स्वर्गने भटकाय
जेना खोळामां भगवान नहाय–सन्तो जेनां दर्शन करे
देवो जेनी सेवा करे.–आपणुं ए सौथी ऊंचुं तीर्थधाम...?
जेटला तीर्थंकर थाय ते बधाय त्यां जाय. कहो जोईए, ते वस्तु कई?
(एने बीजा चार नाना भाई छे.)
“आत्मधर्म वांचता बहारनुं बधुं भूलाई जईने खूब–खूब आनंद
अनुभवाय छे. गुरुदेवनो उपकार छे.–वेणीभाई गांधी, सांगली.
बी. कोम. थईने L. L. B. नो अभ्यास करी रहेला भाईश्री सुरेश भूरालाल
कामदार सुरतथी लखे छे के–हुं आत्मधर्म अने बालविभाग कायम वांचुं छुं,
अने मने घणो आनंद थाय छे. आत्मधर्म वांचतां