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वांचता घणीवार वैराग्यभावना जागी
ऊठे छे. भवचक्रने टाळवुं होय तो गुरुदेवे
बतावेलो आ मार्ग ज साचो छे.
मांडलथी एक नानो बाळक (परेश)
भांगीतूटी भाषामां उमंगथी लखे छे के
‘दरसाल जन्मदिवसे भेट मळे छे ते माटे
आभार मानुं छुं; नानपणथी मळतुं आवुं
मोंघेरुं घन मारा जीवनने उज्जवळ
बनावशे.’
मोरबीना एक मुमुक्षुबेन लखे छे के
आत्मधर्म द्वारा गुरुदेवनी अद्भुत
अलौकिक वाणीनो लाभ मळे छे.
आत्मधर्मने अलंकारमय बनावी संसारी
जीवोने शांतिना चाहे चडावो छो; ते
वांचीने खूब आनंद आवे छे.
वींछीया (स. नं. १७) तमारुं अने
बीजा केटलाक सभ्योनुं काव्य मळ्युं छे.
आत्मधर्म प्रत्ये तेमज गुरुदेव प्रत्ये
उल्लास व्यक्त करवा माटे धन्यवाद!
तमे खरूं ज लख्युं छे के–
भव्यो जागो रे हवे...टाणां वीती रे जशे.
गुरुजी आतम वात आपे,
ए वात भवदुःख कापे.
देह क्षणभंगुर अरे! विलंब शाने करे?
अमने घणा वखतथी सम्यग्दर्शन केम
थतुं नथी? (एक जिज्ञासु)
तेनो उत्तर शोधवा माटे अंतरमां
एटलो ज विचार करवानो छे के,
सम्यग्दर्शन माटे
परिणामोनी उज्जवळतानो जेटलो पुरुषार्थ
जोईए तेटलो पुरुषार्थ जीवे कर्यो छे खरो?–
एना विचारमां प्रश्ननो उत्तर मळी जशे.
उत्तर पुराणमां कहे छे के–
यमराजनी दाढ वच्चे रहेवुं ने जीववानी
ईच्छा करवी–ए ते केवो मोह?
भाई! मरणथी बचवुं होय तो
यमराजना मोढामांथी तुं बहार नीकळ.
अने ज्यां यमराज पहोंची न शके एवा
मोक्षमां जईने वस.
कोईपण गतिमां जीवनुं आयु असंख्य
ज समयनुं छे, छतां तेने ज ते शरण माने
छे; पण आश्चर्य छे के एक पछी एक वीती
रहेली ते आयुनी क्षणो ज तेने यमराज
तरफ धकेली जाय छे.
रे जीव! अनंतकाळनुं जीवन आपनारी
जे चेतना तेने ओळख; ए चेतना ज
मृत्युना मुखमांथी बहार काढनार छे.
दरिद्रतानुं माप!
दरिद्रता केम दूर थाय?
केटलुं धन मळे तो दरिद्रता मटे?
एनुं कोई माप नथी.
लोभ ए दरिद्रता छे; लोभ मटे तो
दरिद्रता मटे.
जेटलो लोभ तेटली दरिद्रता, ते दरिद्रता
दूर करवानो उपाय?–निर्लोभ थवुं ते.
निर्लोभ थवानी रीत?–ज्ञानवैभवथी
आत्मा पूरो छे तेनुं ध्यान धरवुं ते.