Atmadharma magazine - Ank 316
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: महा : २४९६ : ३७ :
चालो ओळखीए भगवानने
एकवार थयो हाथी गांडो
मुनि पासे ए आव्यो,
उपदेश झीली संत मुनिनो
समकित भाव जगाड्यो.
काशी–बनारस नगरी जेनी
कर्या नागने देवा,
कमठे जेने कष्ट दीधां पण
क्षमा न छोडी एवा.
परण्या नहीं पण दीक्षा लीधी,
मोक्षनी शिक्षा दीधी;
सुवर्णभद्र छे टूंक सम्मेद पर
त्यांथी मुक्ति लीधी.
लोढाने ए सोनुं बनावे
आत्माने भगवान;
वामादेवीने छे वहाला
करजो एनुं ज्ञान.
शंख बजावी धरती ध्रुजावी
पछी थया वैरागी,
पशुतणो पोकार सूणीने
रथने पाछो वाळी.
सहेसावनमां ध्यान लगावी
केवळ ज्योति जगावी,
राजुलने पण मार्ग बतावी
संयम–पंथे वाळी.
गीरनार गीरी टोच उपरथी
प्रभुजी मोक्ष पधार्या,
जेणे ओळख्या प्रभुने तेने
मोक्षना मार्ग बताव्या.
यदुवंशना भूषण ए तो
‘शिवा’ नां सन्तान,
शंखलक्षणथी ओळखो एने
वीरतणां सन्तान!
रवि कवि ने अनुभवी
कहेवत छे के–
ज्यां न पहोंचे रवि त्यां पहोंचे कवि;
परंतु ए कहेवत अडधी छे, पूरी कहेवत नीचे प्रमाणे छे–
ज्यां न पहोंचे रवि त्यां पहोंचे कवि,
–अने–
ज्यां न पहोंचे कवि त्यां पहोंचे अनुभवी.