Atmadharma magazine - Ank 317
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: १४ : आत्मधर्म : फागण : २४९६
सम्यग्दर्शनवडे चैतन्यचमत्कार आत्मा जेणे प्राप्त कर्यो ते न्याल थई जाय
छे; ते ज श्रेष्ठ छे ने ते ज धर्मी छे. बाकी जेने चैतन्यनुं भान नथी, तेनी पासे
पुण्यने लीधे लाखो करोडो रूपियाना ढगला होय तोपण, ज्ञानी कहे छे के ते दीन छे,
पर पासेथी सुख लेवा मांगे छे ते अज्ञानथी पागल छे. पैसाना ढगलाथी कांई
सुखी थवातुं नथी, ए तो जड छे, तेमां सुख केवुं? तवंगरपणुं ए कांई गुण नथी
ने दरिद्रता ते कांई दोष नथी. आत्माना अनंतगुणनो खजानो जेणे प्राप्त कर्यो ते
साचो तवंगर छे; ने पोताना अनंतगुणना निधानने भूलीने जे बीजा पासेथी
सुख मांगे छे ते दीन भिखारी छे.
अहा, पोताना चैतन्यस्वरूपनी वात प्रसन्नचित्तथी जे जीव सांभळे छे, एटले के
रागनी रुचिथी आघो खसीने चैतन्यस्वरूपनी रुचि करे छे ते जीव अल्पकाळमां जरूर
मुक्ति पामे छे. जीवे परनो प्रेम कर्यो छे, रागनो प्रेम कर्यो छे पण रागथी पार
चैतन्यस्वरूप पोते कोण छे ते लक्षमां लईने तेनो प्रेम पूर्वे कदी कर्यो नथी. चैतन्यस्वरूप
अखंड अनंतगुणनिधान छे–तेनो प्रेम करी, तेनुं लक्ष करी, श्रद्धा ने अनुभव करवो ते
सम्यग्दर्शन छे, ते मोक्षनो उपाय छे.
जीव कोने कहेवो? परमार्थ जीवनुं स्वरूप केवुं छे? जीवे अनादिथी पोतानुं
जे शुद्धस्वरूप छे ते कदी अनुभव्युं नथी, ओळख्युं नथी; अने उपर टपके
संयोगवाळो के अशुद्धतावाळो ज पोताने अनुभव्यो छे, एटलुं ज पोतानुं अस्तित्व
मान्युं छे.–तेओ तो कादववाळुं मेलुं पाणी पीनारानी जेवा छे. पण जेम औषधिवडे
पाणीने स्वच्छ करीने विवेकी पुरुषो स्वच्छ पाणी पीए छे तेम विवेकी धर्मीजीव
निर्मळ भेदज्ञानवडे पोताना आत्माने संयोगथी अने मलिन भावोथी जुदो
शुद्धस्वरूपे अनुभवे छे. आवो अनुभव ते धर्म छे. एक सेकंड पण आवो धर्म करे
तेने जन्म–मरणनुं निकंदन नीकळी जाय. आवाअनुभव वगर बीजा कोई उपाये
जन्म–मरणथी छूटकारो थाय नहीं.
अरे, रागनी आडशमां आखा चैतन्यभगवानने अज्ञानी देखतो नथी, रागनी
पाछळ ते ज वखते राग वगरनो आखो चैतन्यसमुद्र आनंदथी भरेलो विद्यमान छे. ते
आनंदधाम आत्माने न देखतां, रागना कर्तापणे ज पोतानुं अस्तित्व देखे छे, रागथी
जुदुं पोतानुं अस्तित्व देखतो नथी ते जीव भेदज्ञान