Atmadharma magazine - Ank 317
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: फागण: २४९६ आत्मधर्म : १५ :
वगरनो छे एटले विवेक वगरनो छे, ते तो रागने ज अनुभवे छे, भूतार्थरूप एवा
शुद्धआत्माने ते अनुभवतो नथी.
भगवान सर्वज्ञ परमात्मा कहे छे के जेवी अमारा आत्मानी सत्ता छे, एवी ज
दरेक आत्मानी शुद्ध सत्ता छे. दरेक आत्मा ज्ञान–आनंदमय पोतपोतानी सत्ताथी
परिपूर्ण छे; पोताना स्वरूपथी एकेक आत्मानुं भिन्नभिन्न अस्तित्व छे, ते कोई बीजाने
लीधे नथी. आचार्यदेव कहे छे के अहो! अंदर रागथी जुदो, अनंत गुणे पूरो आत्मा छे
तेने तमे देखो. अंदर अंधारुं नथी; अंधारांनो पण ते जाणनार छे. अंधाराने जाणनार
पोते आंधळो नथी; अंदर चैतन्यप्रकाश छे तेनी सत्तामां अंधकारनुं ज्ञान थाय छे
‘आवा चैतन्यप्रकाशरूपे पोते पोताने देखवो ते सम्यग्दर्शन छे, ने ते ज आत्मानुं श्रेय
छे. ‘हुं अंधारुं छुं–एम नहि पण ‘आ अंधारुं छे ने हुं तेने जाणुं छुं’ एम अंधाराथी
भिन्न रहीने आत्मा तेने जाणे छे, पण पोते तेमां भळी जतो नथी. ए ज रीते राग–
द्वेष–क्रोधादि जेटला शुभ–अशुभ भावो छे ते बधा भावो चैतन्यप्रकाशथी जुदा छे.
आवा चैतन्यस्वरूप आत्माना अनुभवथी ज सम्यग्दर्शन थाय छे, तेना अनुभवथी ज
सम्यग्ज्ञान थाय छे, ने तेना अनुभवथी ज वीतरागी सम्यक्चारित्र थाय छे.–आवो
मोक्षमार्ग छे, ने आ धर्म छे.
शरीर–पैसा वगेरे परवस्तु छे, तेनो आत्मामां अभाव छे; ते वस्तुना
अभावरूप आत्मानुं अस्तित्व छे ते पोतानी चैतन्यसत्ताथी ज टकेलुं छे. ए ज रीते
रागादि परभावो, तेना अभावरूप शुद्ध चैतन्यनुं अस्तित्व पोताथी ज छे. राग वगर
कांई आत्मा मरी जतो नथी, शुद्ध चैतन्यसत्ताथी ज तेनुं जीवन सदाय टकेलुं छे. आवा
आत्मामां अंतर्मुख थईने रागथी भिन्नपणे तेनो अनुभव करवो ते सम्यग्दर्शन छे. ते
ज आत्मानुं श्रेय छे. श्रेयांसनाथ भगवाने आत्माना श्रेयनो आवो मार्ग उपदेश्यो छे.
बाळकपणमां धर्मसेवन
शांतिनाथ भगवान पूर्वे पंचमभवे ज्यारे
वज्रायुद्धचक्रवर्ती हता, त्यारे कनकशांति नामनो तेमनो पौत्र
वैराग्य थतां विचारे छे के–
चतुर पुरुषोए बाळकपणथी ज धर्मनुं सेवन करवुं
जोईए. केमके यमराज क्यारे तेडवा आवशे–ते कही शकातुं नथी.
(शांतिनाथ पुराण)