Atmadharma magazine - Ank 317
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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शिरपुरमां बिराजमान पार्श्वनाथप्रभुनी वीतरागीप्रतिमा
अंतरीक्ष प्रभु आप ज साचा देखी रह्या निज आतमराम;
रागतणुं पण नहीं आलंबन, स्वयंज्योति छो आनंधाम.
रत्नत्रय आभूषण साचुं जड–आभूषणनुं नहीं काम,
त्रणलोकना मुगट स्वयं छो...शुं छे स्वर्ण–मुगटनुं काम?
वस्त्राभरण विन शांतमुद्रा द्रष्टि नाशापै धरें.