: ३४ : आत्मधर्म : फागण : २४९६
वीतरागताना ज पोषक एवा साचा देव–गुरु–धर्म प्रत्ये बहुमान आव्युं छे, तेथी
जगतमां वीतरागमार्गनी केम प्रभावना वधे, देव–गुरु–धर्मनो महिमा जगतमां केम
फेलाय एवा भावथी जिनमंदिर–जिनबिंबप्रतिष्ठा वगेरेनां उत्सव करावे छे तेने
शास्त्रकारोए संमत एटले के प्रशंसनीय कहेल छे. अहो, आवो सरस वीतरागमार्ग! ते
जगतमां केम प्रसिद्ध थाय एवी भावना श्रावकने होय छे.
एक सुंदर वस्तु
गतांकमां एक सुंदर वस्तु शोधी काढवानुं पूछेल, ते सुंदर वस्तु छे–मेरू पर्वत.
* तेना पग पाताळने अडे छे–केमके तेनुं मूळ जमीनमां एक हजार योजन
ऊंडुं छे.
* तेनुं माथुं स्वर्गने भटकाय छे केमके तेनी टोच पछी तरत स्वर्गनी शरूआत
थाय छे
* तेना खोळामां भगवान नहाय छे, केमके तीर्थंकर भगवंतोनो जन्माभिषेक
मेरू उपर थाय छे.
* सन्तो एना दर्शन करे छे, केमके तेना उपर रत्नमय शाश्वत जिनबिंबो
बिराजे छे, तेमज तीर्थंकरोना जन्माभिषेकने लीधे ते पावन तीर्थ छे.
* देवो पण मेरुनी वंदना करवा आवे छे.
* मेरु पर्वतथी ऊंचुं मध्यलोकमां बीजुं कांई नथी, तेथी ते जैनधर्मनुं सौथी
ऊंचुं तीर्थ छे.
* जेटला तीर्थंकर थाय ते बधायने मेरु पर्वत पर जन्माभिषेक माटे ईन्द्र लई
जाय छे.
* जंबुद्वीपनो मुख्य मेरु पर्वत (सुदर्शन मेरु) एक लाख योजन ऊंचो छे,
धातकी द्वीपना बे मेरु तथा पुष्कर द्वीपना बे मेरु ए चारे मेरु ८४ हजार
योजन ऊंचा छे, बीजी बधी बाबतमां ते सुदर्शन मेरु जेवा ज लागे छे; आ
रीते मुख्य मेरु पर्वतने चार नाना भाई छे.
* ते पंचमेरु पर बिराजमान सर्वे जिनबिंबोने नमस्कार